"श्री राम (नेने) कथा –
प्रथम अध्याय "
सूचना :
सभी पाठकगणों से निवेदन है,
कि इस कथा का वाचन एवं पठन, साफ सुथरे तन और मन के साथ करें। श्री राम (नेने) कथा
प्रसंग में बहुत ही भयानक हिंदी का प्रयोग किया गया है, किंतु उन सुधी पाठकगण,
जिनका राष्ट्र और राष्ट्रभाषा पर उतना अधिकार नहीं है जितना होना चाहिए, उनकी
सुविधा के लिए, कठिन हिंदी शब्दों के समीप, आंग्ल भाषा का रूपांतर दे दिया गया है,
आशा है पाठक इस कथा का आनंद उठाएंगे।
जय श्री राम (नेने)..!!
ऋषि रघु ने 350 वर्षों की तपस्या के बाद जैसे ही अपने नेत्र खोले, उन्होंने
नारद जी को अपनी तरफ घूरते हुए पाया। नारद के उद्विग्न मन (Hyper Heart) को शंकालु
दृष्टि (doubtful Look) से देखते हुए, ऋषि ने नारद जी से प्रश्न किया – "हे
त्रैलाक्य यात्री (Global tourist) आपने यहां आने का कष्ट जिस प्रयोजन से किया है,
सो हमें भी ज्ञात हो।" नारद जी ने बिना समय गंवाए निवेदन किया – 'हे ऋषिराज,
आप तो सर्वज्ञाता (Well informed) है, बंद नेत्रों से भी बाहर का दृश्य देख लेते
हैं। समय को व्यतीत करने के लिए कोई प्रसंग सुनाईए। व्यास जी के पास जाता हूं, तो
वे वही सुना सुनाया महाभारत सुना देते हैं। मोरघ्वज, मकरघ्वज की कथाएं सुन सुन के
मन भर चुका है, सो हे ऋषिवर, आप हमें कोई नया अनसुना प्रसंग सुनाईए।' नारद जी के
वचन सुन, ऋषि ने एक दीर्घ उच्छवाश् (Deep breath) लिया और भिक्षा पात्र में से कुछ
भोज्य पदार्थ बिना नारद जी को प्रस्तुत किए अपने मुंह में डाला, कमंडल में से शीतल
जल का एक घूंट मुंह में भरा, और उस जल को अपने मुंह में कुल्ले की तरह घुमाते हुए,
फिर अंदर गटक कर बोले – हरि अनंत हरि कथा अनंता, हे सर्वप्रिय, आज मेरी स्मृतिपटल
(Memory) पर एक अत्यंत मनोहारी प्रसंग बारंबार क्रीडाएं कर रहा है, वही मैं आपके ध्यानार्थ
प्रस्तुत करने जा रहा हूं, आप इस पुण्य प्रसंग को पूर्ण श्रृद्धा के साथ श्रवण
(Listne with full attention) करें। मैं आपको भूलोक (Earth) के श्रीराम (नेने) का
प्रसंग सुनाता हूं, तो ध्यानपूर्वक सुनो।
ऋषिराज के श्रीमुख से, श्रीराम का नाम उच्चरित होते ही, नारद जी ने अपनी
झुकी हुई कमर को सीधा किया, और अपने दोनों हाथों से अपने शरीर के भार को सम्हालते
हुए, अपने मुख और दृष्टि को ऋषि के सामने जमा दिया, ताकि एक भी शब्द इधर उधर न चला
जाए, उनके मुख से निकले और इनके कर्ण में प्रविष्ट (Enter) हो जाए। ऋषि ने अपने
नेत्रों को बंद किया, और बोले –
एकदा नेमिष्यारण्ये, जम्बुद्वीपे, भरत खंडे.
आर्यावर्ते, भारतवर्षे, मुंबई नगरे, अंधेरी उपनगरे, फिल्मी उद्योगे.. माधुरी
नामक एक सुशील, अत्यंत सुंदर, सुघड़, सुसंस्कारी कन्या रहती थी। नारद जी ने अपने मन
की उद्विग्नता (curocity) के आवेश में आकर एक प्रश्न किया – 'हे ऋषि, आपने तो कहा
था, कि ये पुण्य कथा श्रीराम (नेने) की है परंतु माधुरी..?' नारद जी अपना वाक्य
पूर्ण करते, उससे पूर्व ही ऋषि ने अपने नेत्र खोल के, और घूर के नारद जी की ओर
दृष्टिपात किया और कहा – 'हे मतिमंद, आधुनिक युग में मात्र कथा ही नहीं, पटकथा भी
बहुत आवश्यक है, इसलिए हे तात, कृपया बीच में न टोकें और चुपचाप इस कथा के श्रवण
का आनंद लें।' नारद जी को पटकथा संबंधी अपने अल्पज्ञान का अपमानजनक अनुभव हुआ और
वे बोले – "पूजा जप तप नेम अचारा, नहिं
जानत हौं दास तुम्हारा।" क्षमा करें, अब आप मेरे अल्पज्ञानी मुख से एक
भी शब्द न पाएंगे.. कृपया कर, अपनी कथा पुन: प्रारंभ करें।'
तो ऋषि ने आगे कहा – कि "वो कन्या दिन प्रतिदन अपने यौवन की ओर ऐसे
बढ़ रही थी, जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कलाएं बढ़ती हैं। उसके अंग अंग में
सोमरस सी मादकता (Seduction), कमल के तने सदृश्य उसकी बलखाती कमर, और उसके वक्ष
ऐसे तने हुए जैसे हिमालय के दो पर्वत हों" ऋषिराज कुछ ज़्यादा ही उत्साह से
उस कन्या के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण (Describe) कर रहे थे। नारद जी कन्या का इतना
बारीक विश्लेषण सुनकर थोड़े विचलित लग रहे थे। ऋषि सुनाने में मग्न थे "और वो
कन्या नृत्यकला में निपुण, गायन में निपुण, अभिनय में निपुण.. जब वो अपने नृत्य की
भंगिमाओं से (dance steps) से अपने वक्षों को हिलाकर नृत्य करती तो संपूर्ण
आर्यावर्त का हृदय धक धक करने लगता।" नारद जी को लगा कि अगर ऋषि को टोका नहीं
गया तो ये कन्या का इतना वृहद वर्णन (Detail Discription) करेंगे कि ये कथा, जन जन
तक नहीं पहुंच पाएगी, और कुछ मनचलों की अलमारी में छुपी हुई गुप्तज्ञान की पुस्तक समान
संकुचित होकर रह जाएगी। उन्होंने अपना प्रश्न दागा – 'हे ज्ञानी कृपया स्पष्ट
करें, कि क्या ये कन्या माधुरी, हमारी अप्सरा मेनका से भी अत्यधिक सौंदर्यवान थी?
ऋषि अभी वक्ष के सौंदर्य में खोए हुए ही थे, कि इस सवाल ने उनकी तंद्रा (Trans) को
भंग कर दिया..। उनके हृदय के अंदर ऐसे विचारों ने जन्म लिया, कि अभी नारद को अपनी
कुटिया से निष्कासित (Get Out) कर दें, परंतु उन्हें नारद और इन्द्र की मित्रता की
शक्ति का आभास हुआ, इसलिए उन्होंने खोखली सी मुस्कान के साथ कहा – ' हे नारद,
ब्रम्हा जी ने मेनका और रंभा के बाद भी अप्सराओं का उत्पादन विभाग सुचारू रूप से
गतिशील रखा है, फलस्वरूप भूलोक में, माधुरी, प्रीति, मल्लिका, ऐश्वर्य, रानी जैसी
नाना प्रकार की सुंदर नारियों का जन्म हुआ..। हां तो मैं कहां था.. ?' नारद ने तुरंत
कहा – "आप जहां थे, उसे त्याग कर अपना प्रसंग अग्र भाग की ओर ले जाईए।"
ऋषि जैसे फिर खो गए, उन्होंने कहा – 'माधुरी ने फिल्मी आर्यावर्त ने भूचाल
मचा दिया। कभी वो मुख से कहती "धक धक करने लगा," तो कभी अपने दर्शकों के
ज्ञान की परीक्षा लेती और उनसे पूछती, "चोली के पीछे क्या है..।" शनै:
शनै: (Slowly Slowly) वो कन्या प्रसिद्ध के इतने उच्चतम शिखर पर बैठ गई, कि स्वर्ग
का सिंहासन डोलने लगा। देवों ने एक त्वरित संगोष्ठी की (Rapid Meeting) की, और ये
निर्णय लिया गया कि माधुरी की लोकप्रियता का ये समाचार स्वर्ग की अप्सराओं के कर्ण
में प्रविष्ट न होने पाए.. क्योंकि यदि माधुरी को भूलोक में धन संपदा, प्रसिद्ध्
इतनी प्रचुर मात्रा में प्राप्त हो सकती है, तो कहीं स्वर्ग की अप्सराएं, मेनका,
रंभा, उर्वशी भी भूलोक न चली जाए, यदि ऐसा हो गया तो स्वर्ग नृत्य आयोजनों का, और
देवताओं के व्यक्तिगत जीवन (Personal Life) का क्या होगा?
नारद जी काफी देर से बिना सहारे के भूमि पर बैठे थे, इसलिए उनकी कमर तो
अकड़ ही गई थी, साथ ही पैर भी सुन्न पड़ गए थे, उन्होंने अपने शारीरिक आसन को
बदलते हुए एवं अपने पैरों में चुटकी काटते हुए कहा - 'देवों की चिंता स्वाभाविक
थी, मेनका के बिना स्वर्ग और इंद्र की कल्पना करना ही असंभव प्रतीत जान पड़ रहा
है। इसलिए उसके पश्चात क्या हुआ, कृपया कर बताने का कष्ट करें, "रे मन तू
काहे न धीर धरे," मन विचलित हो रहा है ऋषिराज.. '
ऋषि को अब नारद की धृष्टता (Rigidness) की आदत हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने
कहा – हे अधीर नारद, ये देवता अपनी अपनी देवियों से छुप छुप कर, अपने वाहनों पर
विराजमान होकर स्वर्ग के पृष्ठमार्ग से (Backroad) से (ताकि उन्हें कोई देख न ले) विचरण
करते हुए, इंद्र के निज कक्ष* (Private Chamber) में मिले।
(*सूचना : हमारे सुधी और शातिर पाठको ये विदित ही होगा कि ये इंद्र का वही
निज कक्ष है, जिसमें वो रात्रि मदिरापान के पश्चात मेनका के अर्धरात्रि मादक नृत्य
(Late night Raunchy Dance) का दर्शन लाभ करते थे। ज्ञात हो इस कक्ष में ऐसी
अभियांत्रिकी (Engineering) का प्रयोग किया गया है, जिससे आंतरिक ध्वनि (Internal
Sound), बाह्य वातावरण (outer space) में व्याप्त नहीं हो सकती)
नारद जी का ध्यान एक क्षण के लिए, ऋषि रघु के
प्रसंग से विचलित होकर, इंद्र के उस निज कक्ष पर चला गया, जिसमें उन्हें "प्रतियोगिता
पश्चात समारोह" (Post Match Party) में उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ
था.. जिसमें अनेक सुंदर अप्सराएं मनोहारी संगीत पर अपने नितम्बों** को कंपित कर
रही थीं, जो नृत्यकला में उच्चतम प्रदर्शन माना जाता है.. और देवता प्रसन्न होकर
उन पर स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा कर रहे थे..।
(**लेख में जिस नृत्य भंगिमा
का उल्लेख किया गया है, पाठक इसे आधुनिक युग के Belly Dance के समान मान सकते हैं)
ऋषि रघु को अपनी दिव्यदृष्टि से ये आभास तो हो गया कि नारद जी का ध्यान
उनकी बातों पर न होकर, अप्सराओं की भावभंगिमाओं (actions & Movements) पर है,
इसलिए ध्यान पुनराकर्षित करने के लिए, उन्होंने वही किया जो संपूर्ण मानव जाति
अपने उद्भव (Origin) से करती चली आई है – यानि ऋषि दो बार खांसे..। नारद जी समझ गए
कि ये शीतऋतु की खांसी नहीं है, बल्कि उन्हें लज्जित करने के लिए ऋषि द्वारा चली
गई एक चाल है, इसलिए उन्होंने अपना सारा ध्यान ऋषि की नाक से झांकते हुए उन बालों
पर केंद्रित कर दिया, जो वर्षो से न काटने के कारण, स्वयं को मूंछे मानने लगे थे,
और मूंछो में उस तरह विलीन हो गए थे, जैसे अनेक नदियां महासागर में विलीन हो जाती
हैं..।
नारद को अपनी नाक के बालों की तरफ दृष्टिपात करते हुए देख, ऋषि रघु को
असहजता का अनुभव तो हुआ, और उन्होंने अपने दोनों नेत्रों को केंद्र में लाकर इन बालों
को देखने का प्रयास भी किया, परंतु असफल होने पर उन्होंने कथा में विराम लेने का
निर्णय मन ही मन किया..। इस निर्णय के पीछे एक व्यक्तिगत कारण भी समाहित था, ऋषि
कई वर्षों से तपस्या में लीन थे और अपनी लघु शंका की तीब्र अभिलाषा (Urge to pee) पर
विजय पा चुके थे। लेकिन अब तपस्या नहीं, "श्रीराम नेने कथा" वाचन हो रहा
था, इसलिए उन्हें लघु शंका की आवश्यकता का अकस्मात अनुभव हुआ, उन्हें लगा जैसे
उनकी नाभि के नीचे प्रलय आ रहा हो, और इस प्रयोजन से उन्होंने अपने वाम हस्त (Left
Hand) की कनिष्ठा उंगली (Little Finger) को उठाया.. नारद जी को ऐसे इशारों की समझ
बिल्कुल नहीं थी, सो उन्होंने अपने मन की उत्कंठा के वशीभूत होकर पूछ लिया ..
"हे ऋषिवर, कथा के मध्य में, अकस्मात इस गुप्त संकेत का भेद इस नादान सेवक को
बतलाने को स्पष्ट करें.."
ऋषि रघु एक तो अपनी लघु शंका से पीड़ित थे, ऊपर से नारद जी की शंकाए उन्हें
विचलित कर रही थीं, नारद जी कई लोकों में कई बार जा चुके थे, लेकिन उन्हें ऐसे लोकप्रिय
इशारों से अनभिज्ञ थे, अत: उन्होंने कहा – हे नारद, इस संकेत का आशय ये है, कि "श्री
राम नेने कथा" का प्रथम अध्याय यहीं पूर्ण होता है.. अब मैं इस कथा का अगला
अध्याय, अगली बार प्रस्तुत करूंगा, तब तक आप कहीं जाईएगा मत, हम शीघ्र ही यहीं
उपस्थित होंगे, तब तक के लिए आज्ञा दीजिए.. धन्यवाद..
ऋषि के इतना कहते ही, नारद को वातावरण में एक संगीत का आभास हुआ, ऐसा लगा
जैसे कई सितार एक साथ बज उठे हों.. ऋषिकाल में कथा विराम के बाद यही संगीत
व्यवस्था, कलयुग में भी खूब प्रचलित हुई और इसे आंग्ल भाषा में Break कहा जाने
लगा..
(नोट – क्या माधुरी को इंद्र अपनी सभा में आमंत्रित करेंगे.. क्या मेनका स्वर्ग छोड़कर पृथ्वी पर अपनी झलक
दिखलाएंगी.. क्या श्रीराम नेने का आगमन इस कथा में कोई नया प्रसंग लेकर आएगा.. इन
सवालों के उत्तर जानने के लिए, पढ़ना न भूलिए, श्री राम नेने कथा का अगला द्वितीय
अध्याय.. शीघ्र के आपके हाथों में होगा.. – लेखक)
RD Tailang
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