19 June 2014

"श्री राम (नेने) कथा – प्रथम अध्याय "


"श्री राम (नेने) कथा – प्रथम अध्याय "

सूचना :
सभी पाठकगणों से निवेदन है, कि इस कथा का वाचन एवं पठन, साफ सुथरे तन और मन के साथ करें। श्री राम (नेने) कथा प्रसंग में बहुत ही भयानक हिंदी का प्रयोग किया गया है, किंतु उन सुधी पाठकगण, जिनका राष्ट्र और राष्ट्रभाषा पर उतना अधिकार नहीं है जितना होना चाहिए, उनकी सुविधा के लिए, कठिन हिंदी शब्दों के समीप, आंग्ल भाषा का रूपांतर दे दिया गया है, आशा है पाठक इस कथा का आनंद उठाएंगे।
जय श्री राम (नेने)..!!

ऋषि रघु ने 350 वर्षों की तपस्या के बाद जैसे ही अपने नेत्र खोले, उन्होंने नारद जी को अपनी तरफ घूरते हुए पाया। नारद के उद्विग्न मन (Hyper Heart) को शंकालु दृष्टि (doubtful Look) से देखते हुए, ऋषि ने नारद जी से प्रश्न किया – "हे त्रैलाक्य यात्री (Global tourist) आपने यहां आने का कष्ट जिस प्रयोजन से किया है, सो हमें भी ज्ञात हो।" नारद जी ने बिना समय गंवाए निवेदन किया – 'हे ऋषिराज, आप तो सर्वज्ञाता (Well informed) है, बंद नेत्रों से भी बाहर का दृश्य देख लेते हैं। समय को व्यतीत करने के लिए कोई प्रसंग सुनाईए। व्यास जी के पास जाता हूं, तो वे वही सुना सुनाया महाभारत सुना देते हैं। मोरघ्वज, मकरघ्वज की कथाएं सुन सुन के मन भर चुका है, सो हे ऋषिवर, आप हमें कोई नया अनसुना प्रसंग सुनाईए।' नारद जी के वचन सुन, ऋषि ने एक दीर्घ उच्छवाश् (Deep breath) लिया और भिक्षा पात्र में से कुछ भोज्य पदार्थ बिना नारद जी को प्रस्तुत किए अपने मुंह में डाला, कमंडल में से शीतल जल का एक घूंट मुंह में भरा, और उस जल को अपने मुंह में कुल्ले की तरह घुमाते हुए, फिर अंदर गटक कर बोले – हरि अनंत हरि कथा अनंता, हे सर्वप्रिय, आज मेरी स्मृतिपटल (Memory) पर एक अत्यंत मनोहारी प्रसंग बारंबार क्रीडाएं कर रहा है, वही मैं आपके ध्यानार्थ प्रस्तुत करने जा रहा हूं, आप इस पुण्य प्रसंग को पूर्ण श्रृद्धा के साथ श्रवण (Listne with full attention) करें। मैं आपको भूलोक (Earth) के श्रीराम (नेने) का प्रसंग सुनाता हूं, तो ध्यानपूर्वक सुनो।

ऋषिराज के श्रीमुख से, श्रीराम का नाम उच्चरित होते ही, नारद जी ने अपनी झुकी हुई कमर को सीधा किया, और अपने दोनों हाथों से अपने शरीर के भार को सम्हालते हुए, अपने मुख और दृष्टि को ऋषि के सामने जमा दिया, ताकि एक भी शब्द इधर उधर न चला जाए, उनके मुख से निकले और इनके कर्ण में प्रविष्ट (Enter) हो जाए। ऋषि ने अपने नेत्रों को बंद किया, और बोले –

एकदा नेमिष्यारण्ये, जम्बुद्वीपे, भरत खंडे. आर्यावर्ते, भारतवर्षे, मुंबई नगरे, अंधेरी उपनगरे, फिल्मी उद्योगे.. माधुरी नामक एक सुशील, अत्यंत सुंदर, सुघड़, सुसंस्कारी कन्या रहती थी। नारद जी ने अपने मन की उद्विग्नता (curocity) के आवेश में आकर एक प्रश्न किया – 'हे ऋषि, आपने तो कहा था, कि ये पुण्य कथा श्रीराम (नेने) की है परंतु माधुरी..?' नारद जी अपना वाक्य पूर्ण करते, उससे पूर्व ही ऋषि ने अपने नेत्र खोल के, और घूर के नारद जी की ओर दृष्टिपात किया और कहा – 'हे मतिमंद, आधुनिक युग में मात्र कथा ही नहीं, पटकथा भी बहुत आवश्यक है, इसलिए हे तात, कृपया बीच में न टोकें और चुपचाप इस कथा के श्रवण का आनंद लें।' नारद जी को पटकथा संबंधी अपने अल्पज्ञान का अपमानजनक अनुभव हुआ और वे बोले – "पूजा जप तप नेम अचारा, नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।" क्षमा करें, अब आप मेरे अल्पज्ञानी मुख से एक भी शब्द न पाएंगे.. कृपया कर, अपनी कथा पुन: प्रारंभ करें।'  
 
तो ऋषि ने आगे कहा – कि "वो कन्या दिन प्रतिदन अपने यौवन की ओर ऐसे बढ़ रही थी, जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कलाएं बढ़ती हैं। उसके अंग अंग में सोमरस सी मादकता (Seduction), कमल के तने सदृश्य उसकी बलखाती कमर, और उसके वक्ष ऐसे तने हुए जैसे हिमालय के दो पर्वत हों" ऋषिराज कुछ ज़्यादा ही उत्साह से उस कन्या के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण (Describe) कर रहे थे। नारद जी कन्या का इतना बारीक विश्लेषण सुनकर थोड़े विचलित लग रहे थे। ऋषि सुनाने में मग्न थे "और वो कन्या नृत्यकला में निपुण, गायन में निपुण, अभिनय में निपुण.. जब वो अपने नृत्य की भंगिमाओं से (dance steps) से अपने वक्षों को हिलाकर नृत्य करती तो संपूर्ण आर्यावर्त का हृदय धक धक करने लगता।" नारद जी को लगा कि अगर ऋषि को टोका नहीं गया तो ये कन्या का इतना वृहद वर्णन (Detail Discription) करेंगे कि ये कथा, जन जन तक नहीं पहुंच पाएगी, और कुछ मनचलों की अलमारी में छुपी हुई गुप्तज्ञान की पुस्तक समान संकुचित होकर रह जाएगी। उन्होंने अपना प्रश्न दागा – 'हे ज्ञानी कृपया स्पष्ट करें, कि क्या ये कन्या माधुरी, हमारी अप्सरा मेनका से भी अत्यधिक सौंदर्यवान थी? ऋषि अभी वक्ष के सौंदर्य में खोए हुए ही थे, कि इस सवाल ने उनकी तंद्रा (Trans) को भंग कर दिया..। उनके हृदय के अंदर ऐसे विचारों ने जन्म लिया, कि अभी नारद को अपनी कुटिया से निष्कासित (Get Out) कर दें, परंतु उन्हें नारद और इन्द्र की मित्रता की शक्ति का आभास हुआ, इसलिए उन्होंने खोखली सी मुस्कान के साथ कहा – ' हे नारद, ब्रम्हा जी ने मेनका और रंभा के बाद भी अप्सराओं का उत्पादन विभाग सुचारू रूप से गतिशील रखा है, फलस्वरूप भूलोक में, माधुरी, प्रीति, मल्लिका, ऐश्वर्य, रानी जैसी नाना प्रकार की सुंदर नारियों का जन्म हुआ..। हां तो मैं कहां था.. ?' नारद ने तुरंत कहा – "आप जहां थे, उसे त्याग कर अपना प्रसंग अग्र भाग की ओर ले जाईए।"

ऋषि जैसे फिर खो गए, उन्होंने कहा – 'माधुरी ने फिल्मी आर्यावर्त ने भूचाल मचा दिया। कभी वो मुख से कहती "धक धक करने लगा," तो कभी अपने दर्शकों के ज्ञान की परीक्षा लेती और उनसे पूछती, "चोली के पीछे क्या है..।" शनै: शनै: (Slowly Slowly) वो कन्या प्रसिद्ध के इतने उच्चतम शिखर पर बैठ गई, कि स्वर्ग का सिंहासन डोलने लगा। देवों ने एक त्वरित संगोष्ठी की (Rapid Meeting) की, और ये निर्णय लिया गया कि माधुरी की लोकप्रियता का ये समाचार स्वर्ग की अप्सराओं के कर्ण में प्रविष्ट न होने पाए.. क्योंकि यदि माधुरी को भूलोक में धन संपदा, प्रसिद्ध् इतनी प्रचुर मात्रा में प्राप्त हो सकती है, तो कहीं स्वर्ग की अप्सराएं, मेनका, रंभा, उर्वशी भी भूलोक न चली जाए, यदि ऐसा हो गया तो स्वर्ग नृत्य आयोजनों का, और देवताओं के व्यक्तिगत जीवन (Personal Life) का क्या होगा? 

नारद जी काफी देर से बिना सहारे के भूमि पर बैठे थे, इसलिए उनकी कमर तो अकड़ ही गई थी, साथ ही पैर भी सुन्न पड़ गए थे, उन्होंने अपने शारीरिक आसन को बदलते हुए एवं अपने पैरों में चुटकी काटते हुए कहा - 'देवों की चिंता स्वाभाविक थी, मेनका के बिना स्वर्ग और इंद्र की कल्पना करना ही असंभव प्रतीत जान पड़ रहा है। इसलिए उसके पश्चात क्या हुआ, कृपया कर बताने का कष्ट करें, "रे मन तू काहे न धीर धरे," मन विचलित हो रहा है ऋषिराज.. '

ऋषि को अब नारद की धृष्टता (Rigidness) की आदत हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने कहा – हे अधीर नारद, ये देवता अपनी अपनी देवियों से छुप छुप कर, अपने वाहनों पर विराजमान होकर स्वर्ग के पृष्ठमार्ग से (Backroad) से (ताकि उन्हें कोई देख न ले) विचरण करते हुए, इंद्र के निज कक्ष* (Private Chamber) में मिले।

(*सूचना : हमारे सुधी और शातिर पाठको ये विदित ही होगा कि ये इंद्र का वही निज कक्ष है, जिसमें वो रात्रि मदिरापान के पश्चात मेनका के अर्धरात्रि मादक नृत्य (Late night Raunchy Dance) का दर्शन लाभ करते थे। ज्ञात हो इस कक्ष में ऐसी अभियांत्रिकी (Engineering) का प्रयोग किया गया है, जिससे आंतरिक ध्वनि (Internal Sound), बाह्य वातावरण (outer space) में व्याप्त नहीं हो सकती)

नारद जी का ध्यान एक क्षण के लिए, ऋषि रघु के प्रसंग से विचलित होकर, इंद्र के उस निज कक्ष पर चला गया, जिसमें उन्हें "प्रतियोगिता पश्चात समारोह" (Post Match Party) में उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था.. जिसमें अनेक सुंदर अप्सराएं मनोहारी संगीत पर अपने नितम्बों** को कंपित कर रही थीं, जो नृत्यकला में उच्चतम प्रदर्शन माना जाता है.. और देवता प्रसन्न होकर उन पर स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा कर रहे थे..।

(**लेख में जिस नृत्य भंगिमा का उल्लेख किया गया है, पाठक इसे आधुनिक युग के Belly Dance के समान मान सकते हैं)   

ऋषि रघु को अपनी दिव्यदृष्टि से ये आभास तो हो गया कि नारद जी का ध्यान उनकी बातों पर न होकर, अप्सराओं की भावभंगिमाओं (actions & Movements) पर है, इसलिए ध्यान पुनराकर्षित करने के लिए, उन्होंने वही किया जो संपूर्ण मानव जाति अपने उद्भव (Origin) से करती चली आई है – यानि ऋषि दो बार खांसे..। नारद जी समझ गए कि ये शीतऋतु की खांसी नहीं है, बल्कि उन्हें लज्जित करने के लिए ऋषि द्वारा चली गई एक चाल है, इसलिए उन्होंने अपना सारा ध्यान ऋषि की नाक से झांकते हुए उन बालों पर केंद्रित कर दिया, जो वर्षो से न काटने के कारण, स्वयं को मूंछे मानने लगे थे, और मूंछो में उस तरह विलीन हो गए थे, जैसे अनेक नदियां महासागर में विलीन हो जाती हैं..।

नारद को अपनी नाक के बालों की तरफ दृष्टिपात करते हुए देख, ऋषि रघु को असहजता का अनुभव तो हुआ, और उन्होंने अपने दोनों नेत्रों को केंद्र में लाकर इन बालों को देखने का प्रयास भी किया, परंतु असफल होने पर उन्होंने कथा में विराम लेने का निर्णय मन ही मन किया..। इस निर्णय के पीछे एक व्यक्तिगत कारण भी समाहित था, ऋषि कई वर्षों से तपस्या में लीन थे और अपनी लघु शंका की तीब्र अभिलाषा (Urge to pee) पर विजय पा चुके थे। लेकिन अब तपस्या नहीं, "श्रीराम नेने कथा" वाचन हो रहा था, इसलिए उन्हें लघु शंका की आवश्यकता का अकस्मात अनुभव हुआ, उन्हें लगा जैसे उनकी नाभि के नीचे प्रलय आ रहा हो, और इस प्रयोजन से उन्होंने अपने वाम हस्त (Left Hand) की कनिष्ठा उंगली (Little Finger) को उठाया.. नारद जी को ऐसे इशारों की समझ बिल्कुल नहीं थी, सो उन्होंने अपने मन की उत्कंठा के वशीभूत होकर पूछ लिया .. "हे ऋषिवर, कथा के मध्य में, अकस्मात इस गुप्त संकेत का भेद इस नादान सेवक को बतलाने को स्पष्ट करें.."

ऋषि रघु एक तो अपनी लघु शंका से पीड़ित थे, ऊपर से नारद जी की शंकाए उन्हें विचलित कर रही थीं, नारद जी कई लोकों में कई बार जा चुके थे, लेकिन उन्हें ऐसे लोकप्रिय इशारों से अनभिज्ञ थे, अत: उन्होंने कहा – हे नारद, इस संकेत का आशय ये है, कि "श्री राम नेने कथा" का प्रथम अध्याय यहीं पूर्ण होता है.. अब मैं इस कथा का अगला अध्याय, अगली बार प्रस्तुत करूंगा, तब तक आप कहीं जाईएगा मत, हम शीघ्र ही यहीं उपस्थित होंगे, तब तक के लिए आज्ञा दीजिए.. धन्यवाद..

ऋषि के इतना कहते ही, नारद को वातावरण में एक संगीत का आभास हुआ, ऐसा लगा जैसे कई सितार एक साथ बज उठे हों.. ऋषिकाल में कथा विराम के बाद यही संगीत व्यवस्था, कलयुग में भी खूब प्रचलित हुई और इसे आंग्ल भाषा में Break कहा जाने लगा..

(नोट – क्या माधुरी को इंद्र अपनी सभा में आमंत्रित करेंगे..  क्या मेनका स्वर्ग छोड़कर पृथ्वी पर अपनी झलक दिखलाएंगी.. क्या श्रीराम नेने का आगमन इस कथा में कोई नया प्रसंग लेकर आएगा.. इन सवालों के उत्तर जानने के लिए, पढ़ना न भूलिए, श्री राम नेने कथा का अगला द्वितीय अध्याय.. शीघ्र के आपके हाथों में होगा.. – लेखक)

RD Tailang

© Sequin Entertainment Pvt. Ltd. Mumbai 2014

20 July 2013

My Interview in Times of India Crest Edition

NFO-TAINMENT

The crorepati writer

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INFO-TAINMENT : Tailang was given a simple brief: to write the script for a quiz show that will entertain while educating

He's the man who gives Amitabh Bachchan his lines. Meet RD Tailang, the writer of 'Kaun Banega Crorepati', the successful game show that's set to enter its seventh season.
When RD Tailang was invited to audition as a scriptwriter for the first season of Kaun Banega Crorepati (KBC) in 2000, he was overwhelmed and nervous. He was among the many writers short-listed by the production house, and the chances of being selected seemed rather slim. Siddhartha Basu, the mastermind behind the show, provided a simple brief: A quiz show that will entertain while educating. Tailang had his job cut out. "As a television writer, I knew the language had to be short and sweet. I also knew that the biggest audience would be middle-class India, " he says.

Tailang struck the right chord when he penned the lines: "Ek crore rupay ek aam Hindustani ke jeevan main kya maayne rakhte hain? Kareeb kareeb aadhe se zyada Hindustaniyon ki salary bees hazaar hai. Toh aapko ek crore kamaane main kam se kam pachaas saal lag jayenge. Par yeh ek khaali aisi jagah hai jahan aap pachaas minute main ek crore rupay kama sakte hain. (What does Rs 1 crore mean to the average Indian? Well, the average salary of a regular Indian is Rs 20, 000. So, it would take you about 50 years to earn Rs 1 crore. This is the only place where you can make that crore in 50 minutes). "

The entire team of KBC along with host Amitabh Bachchan felt the impact the moment the lines were read. So did the audience which tuned in every day to catch the show. KBC became a game changer in the history of Indian game shows and Tailang grabbed the hot seat of the show's writer.

Seated in his office in Goregaon in Mumbai, Tailang is scripting the lines of the seventh season set to go on air by the end of August or the beginning of September. "The show has given me so much. Whatever I do for it is less in comparison, " he says.
Born and raised in Tikamgarh in Madhya Pradesh, Tailang's dream profession was banking. "I wanted to learn typing and shorthand and take the bank exams. But I couldn't clear a single exam, " he says. His focus shifted to teaching and began taking tuition for children. He visited Mumbai in 1991. It was his first visit to the city he had only seen in films, and associated with thieves, crime and the underworld.

Tailang had carried some of the cartoons he had drawn since childhood, and during the six-day stay took them to the editorial office of the Hindi evening newspaper, Dopahar. Impressed with his drawing and Hindi skills, the editor offered him a job. Tailang, who was unemployed, decided to give it a shot and worked there for a couple of years.

With the decline of evening papers, Tailang moved to a production house, and worked as an assistant director on shows such as Mirch Masala, Movie Club News and Chitrahaar. "I wrote some episodes of Mirch Masala, " he says.
His writing held him in good stead and when Sony launched the late-night talk show Movers and Shakers in 1999, Tailang was signed on as writer. Shekhar Suman's mimicry of politicians, actors and cricketers and Tailang's funny lines caught the nation's imagination. "It was a turning point in my life. The humour on the show worked and I became a name in the industry. "

Soon after Movers and Shakers was wrapped up, he got a call from the makers of KBC. "I was looking to do a show that was different from anything I had written previously, " says Tailang, who is also known for scripting award shows.

He bagged the coveted spot in KBC, but the true test came 20 episodes later. Its catchphrases such as 'Computerji, lock kiya jaaye' and 'Sahi jawaab' - became popular. Now that had to be sustained. "The format had caught on, but to keep the audience hooked had become the real challenge. It is then that we introduced a thought for the day before each episode. It really worked with the audience, " says Tailang.

In Season Two, he carried the same element forward, but this time Tailang's aim was to reach out to youth as well. "The thoughts about life were addressed to the youth. I made sure I added humour, " he says.

The third season was crucial because Bachchan was being replaced by Shah Rukh Khan. "Both have vastly different personalities, so the entire template of the script had to change. " 'Lock kiya jaye' became 'Freeze kiya jaye'. 'Main quit karna chahta hoon (I want to quit)' became 'Shah Rukh, main tumhein gale lagana chahta hoon (Shah Rukh, I want to hug you)'. "Shah Rukh was younger and hence we could portray him in a slightly different way, " says the writer.

After the third season, KBC went off air for a few years, and Tailang busied himself with Nach Baliye and several musical shows. He wrote the Ranbir Kapoor-Katrina Kaif starrer Ajab Prem Ki Ghazab Kahaani for Rajkumar Santoshi.

Tailang's second innings with KBC began when the show was re-launched in 2010 on a different channel, Sony, and at a different time slot, the weekend. He was aware that the original flavour had to be retained. "The entire team was nervous. We wanted to give it our best. Newer lifelines and rules were introduced. As a writer, I focussed on the grassroots. The show had become bigger and more people were attracted to it, " he says.

Season Five has been his most satisfying so far. It was in this season that he introduced stories of real-life people. "A research team worked on each contestant's back story and I wrote each script bearing that in mind, " he says. So when a student was in the hot seat, the thought for the day would be youth-oriented. If it was a homemaker, the focus tilted towards her.

The introduction of terms such as 'Ghadiyal Babu', 'Shrimati Tiktiki' and 'Sui Mui' happened during this season. Tailang has a simple explanation. "When we were young, our parents taught us about the moon and sun by referring to them as Chandamama and Surajchachu. Giving a human identity to things keeps them longer in our memory, " he says.

Humour has always been Tailang's strong point and he says he owes it to the land he comes from. "Most people in the Hindi belt have a good sense of humour, " he says.

21 June 2013

Jia की मौत, और काला Bollywood

जिस दिन Jia Khan ने खुदकुशी की, उसके ठीक दो दिन बाद "Page 3 निवासी" Shobha De उठीं, एक काले Paint का डब्बा उठाया, और चल दी Bollywood पर कालिख पोतने। उन्होंने और उन जैसे कई और "Page 3 निवासियों" ने अपने अपने लेखों में Film Industry की धज्जियां उड़ा दीं। ऐसा लगने लगा मानो Bollywood film sets पर नहीं, होटलों के बिस्तरों में पाया जाता है। यहां लोग फिल्म बनाने के लिए इक्ठ्ठे नहीं होते, बल्कि शराब, लड़कियां और Drugs में डूबने के लिए मिलते हैं। Shobha De की मानें तो फिल्म जगत वो अंधा कुंआ है, जिसमें जो भी झांकता हैं, मौत के काले अंधकार में समा जाता है। Shobha De के Bollywood के आगे, Al qaida और Taliban रामराज्य जैसे लगने लगे।

इससे आगे का लेख Shobha De और उन जैसे कई और "Page 3 निवासियों" के लिए मेरा जवाब है।

मुझे पक्का यकीन है Shobha De ने अपनी जिंदगी में, कभी न कभी फिल्में लिखने का ज़रूर सोचा होगा, नहीं तो इतनी कोशिश ज़रूर की होगी कि उनकी कहानी पर फिल्म बने, ये भी नहीं तो फिर अपनी किसी किताब को फिल्मी हस्ती से Lauch कराने की कोशिश ज़रूर की होगी.. ये सब न भी हुआ हो, तो उन्होंने ज़रूर फिल्मी दोस्त बनाने की कोशिश की होगी, बनाए होंगे, और इस समय भी उनके फिल्मी दोस्त होंगे। लेकिन अचानक Shobha De को ये फिल्मी दुनिया अंधेरी और बुराई की दुनिया नज़र आने लगी, क्योंकि Jia Khan ने व्यक्तिगत कारणों से खुदकुशी कर ली।

लोग कहते हैं, कि फिल्मी दुनिया में सिर्फ Success चलती है, और जो सफल होता है, लोग उसी के पीछे भागते हैं। जी हां ऐसा होता है, बिल्कुल होता है, क्योंकि सफल् आदमी सबके सामने होता है, हंसता, खुश, मुस्कुराता, अपनी सफलता पे इतराता.. और असफल आदमी खुद ही दुनिया से छुपता छुपाता, दुनिया के सामने आने से डरता है, इसलिए वो किसी के सामने, किसी के ख्याल में भी नहीं होता। Shobha De के चाहने वाले तो फिल्मी दुनिया से नहीं हैं, फिर उनमें से कितने चाहने वाले हैं, जो उनके पति को भी जानते होंगे, वो क्या करते हैं, खुश है, या दुखी हैं, किसी को क्या पता। और ऐसा ये फिल्मी दुनिया में नहीं होता, हर जगह होता है..। Veshno Devi सफल् मंदिर है, इसलिए लोग गिरते पड़ते भी पहाड़ चढ़ कर पहुंच जाते हैं, वहीं, एक शहर के कोने में अनजान मंदिर धूल खाता खंडहर होता रहता है, कोई वहां झांकता भी नहीं है, क्योंकि वो सफल नहीं है। Shobha De लेखन की दुनिया से जुड़ी हैं, क्या उन्होंने खुद कभी ये ख्याल रखा है, कि KP saxena ने फिल्म Lagaan के Dialogue लिखने के बाद क्या किया, क्या उनकी कोई और किताब आई, उनका घर का खर्चा कैसे चल रहा है? उन्हें अखबार की दुनिया के कितने लोगों का पता है, कि वो किस हालत में अपनी गुजर बसर कर रहे हैं।

चलिए लेखन की दुनिया को छोड़ते हैं, Business World से ही ले लें, कभी अंबानी ने चिंता की कि Mobile आने के बाद बेचारा Pager Manufacturer क्या कर रहा है, उसका घर कैसे चल रहा है। या Pen drive आने के बाद Floppy maker क्या कर रहे हैं, या Reliance Fresh के बाद Local सब्जी वाला अपना घर कैसे चला रहा है। जिस तरह से बाहर की दुनिया में हर एक इंसान की देखभाल नामुमकिन है, उसी तरह फिल्मी दुनिया में कौन अपने Flat में क्या कर रहा है, इसकी खबर रखना नामुमकिन है। और ऐसा भी नहीं है, जब भी फिल्मी दुनिया को किसी के बारे में पता लगा है, तो उसने दिल खोल कर उस इंसान की मदद की है। अगर सैकड़ों किसानों की आत्महत्या के बाद भी महाराष्ट्र अगर काला राज्य नहीं हुआ, तो Jia Khan की मौत के बाद फिल्मी दुनिया काली और गंदी दुनिया कैसे हो गई।

किसी का आत्महत्या करना उस इंसान की मानसिक हालत पर निर्भर करता है। आत्महत्या करने के बहुत से व्यक्तिगत कारण होते हैं। लेकिन ये आरोप लगा है, कि Jia को Industry ने काम नहीं दिया, इसलिए वो बहुत परेशान थी । इस हिसाब से तो देश के हर उस नौजवान को आत्महत्या करनी चाहिए जो बरसों नौकरी के लिए ठौकरें खाते रहते हैं। उस फिल्म निर्माता को आत्महत्या कर लेनी चाहिए, जिसकी करोड़ों रूपये और बरसों की मेहनत के बाद बनाई गई फिल्म को जनता और Critics दो मिनिट में बरबाद कर देते हैं। या फिर उस साबुन निर्माता को भी आत्महत्या कर लेनी चाहिए, जिसके Product की तरफ जनता देखती भी नहीं। जब हम इन घटनाओं के लिए जनता को जिम्मेदार नहीं मानते तो फिर किसी एक Hero या Heroine की मौत की जिम्मेदार पूरी फिल्मी दुनिया कैसे हो जाती है?

ज़रा इस तरफ भी देख लिया जाए, जब कोई Hero या Heroine सफल होते है, तो वो कितने लोगों से अपना नाता तोड़ लेते है। वो खुद भी तो अपने इर्दगिर्द एक ऐसा मजबूत दायरा बांध लेते है, जिसको भेद पाना मुश्किल होता है। वो अपनी सफलता के साथ खुद अकेले अच्छा महसूस करते है, फिर होता ये है, कि लोग धीरे धीरे उससे कटने लगते हैं, उसको उसकी मर्जीं के हिसाब से अकेला छोड़ देते हैं। लेकिन जब सफलता चली जाती है, तो बाहरी दुनिया से वो इंसान कट चुका होता है, और अंदर की दुनिया में उसके पास कोई बचता नहीं है..। उसके अकेलेपन की किसी को भनक भी नहीं लगती है, कि इस दायरे के अंदर एक अकेला इंसान है जो अब दुखी हो रहा है। जब आप किसी को अपनी सफलता में शामिल नहीं करते, तो वो आपकी असफलता में भी शामिल नहीं होता। अमिताभ बच्चन को छोड़कर ऐसे कितने कलाकार हैं, जो अपने प्रशंसकों की हर चिठ्ठियों के जवाब भेजते हैं। उनकी तरह कितने लोग हैं, जो अपने चाहने वालों को नाम के साथ जन्म दिन की शुभकामनाएं अपने Blog पर देते हैं। जब आप लोगों की उम्मीदों को रोंद कर उनसे कट जाते हैं, तो ये उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए, कि लोग अपने आप आके आपसे जुड़ जाएं। किसी को सपना नहीं हो रहा है, कि आपके साथ जीवन में क्या घट रहा है।    

फिल्मी दुनिया ही क्यों, एक कलाकार की तनहा मौत का जिम्मदार आम जनता को भी क्यों न बनाया जाए, क्योंकि जब वो कलाकार Hit होता है, सफल् होता है तो यही जनता उसका पीछा करती है, घंटों घर के बाहर इस आशा में खड़ी रहती है, कि वो अब आएगा और 10 Second हाथ हिलाकर चला जाएगा । वो किसी को अपनी Shooting का, अपने Hotel का पता नहीं बताता है, फिर भी ये जनता किसी भी तरह से उसका पता लगा कर वहां पहुंच जाती है, वो अपने Honeymoon पर हो, Dinner पर हो, या किसी के अंतिम संस्कार में, ये जनता वहां भी उसका नाक में दम कर कर देती है, लेकिन यही जनता तब क्यों पता नहीं लगाती है, जब वो कलाकार परदे से सालों साल गायब रहता है। Rajesh Khanna के अंतिम दिनों में कितने उनके चाहने वाले उनके घर पर खड़े रहते थे? उनको खून से ख़त लिखने वाली लड़कियां उनके अंतिम दिनों में अपनी चाहत का एक भी ख़त क्यों नहीं लिख पाईं, शायद ऐसा कोई एक ख़त उनकी जिंदगी में चंद दिनों का और इज़ाफा कर देता। Nishabd के बाद कितने ही ऐसे लोग होंगे जिन्होंने Jia Khan के Posters अपने Bedrooms में लगाए होंगे, क्या हो गया था उनको, अब वो Jia के घर बाहर क्यों नहीं खड़े रहते थे.. क्योंकि एक भी प्रशंसक ने Facebook या Twitter पे लिखा हो, कि We miss you jia.. 2010 के बाद तुम्हारी कोई फिल्म क्यों नहीं आई। लोग कहते हैं, Shamshad Begum की बहुत ही गरीबी में मौत हुई, ऐसी मौतों के लिए अगर फिल्मी दुनिया जिम्मेदार है, तो आम जनता या वो लेखक भी तो जिम्मेदार हैं, जो मरने के बाद Facebook या Twitter पे RIP Golden Voice of India लिखते हैं। आज तक किसी ने ये सवाल तो नहीं उठाया कि जब Meeka और Atif Aslam गा सकते हैं, तो Shabbir Kumar, Mohd Aziz, Kumar Sanu को कोई गाना क्यों नहीं मिल रहा है..?

फिल्मी दुनिया को Target बनाना बहुत आसान है, क्योंकि ये दुनिया जवाब नहीं देती। ये दुनिया किसी से हाथापाई नहीं करती.. सबका खुली बाहों से स्वागत करती है। कितनी ऐसी कहानियां हैं, जहां राह चलता इंसान यहां आकर दुनिया की आंखों का तारा हो गया। कहते हैं ये बेरहम दुनिया है, मैं उन लोगों से कहना चाहता हूं, कि अगर इस दुनिया के दिल नहीं होता तो शायद आधे से ज्यादा Super stars और Heroines उन्ही सड़कों पर घूम रहे होते जहां से वो उठकर आए हैं। फिल्मी दुनिया का सब कोई बाप बनना चाहता है, इसके बारे में सब अपनी राय देना चाहते हैं। फिल्में बनाता कोई है, लेकिन उसका Review करने के लिए सैकड़ौं बिन बुलाए मेहमान चले आते हैं, कोई उनसे मांगता नहीं फिर भी वो Star देने बैठ जाते हैं। वो जनता के रहनुमा बन जाते हैं.. कोई उनसे पूछे कि भई आप फिल्मी Review क्यों करने बैठ जाते हैं, हमने तो नहीं कहा ? आप Lux के नए साबुन का Review तो कभी नहीं करते, कि नहाने में अच्छा है, खुशबू अच्छी है, हाथ से फिसलता बहुत है। या फिर आप Bata की नई चप्पल का Review नहीं करते कि चलने में बहुत ही Smooth है, और काटती भी नहीं है, लेकिन फिल्मी पंड़ित बनकर फिल्म की कुंडली लेकर बैठ जाएंगे बांचने को। क्योंकि फिल्मी दुनिया के लिए वही कहावत है, गांव की लुगाई सबकी भौजाई..।    

आत्महत्या चाहें गांव के किसानों की हो, Result आने के बाद Students की हो, या जिंदगी से परेशान किसी कलाकार की.. ये हमारे समाज के लिए बहुत ही दुख की बात है, और इसकी जिम्मेवारी मरने वाले के घर, परिवार, दोस्त, रिश्तेदार, समाज और हम सबकी बनती है, इसमें सिर्फ फिल्मी दुनिया को दोष देना, खुद की जिम्मेदारी से बचना है…। Jia की आत्मा को शांति मिले, ईश्वर से यही प्रार्थना है..

RD Tailang
Mumbai


  

13 June 2013

आओ Awards बनाएं....


गाजर का हलवा बड़ा स्वादिष्ट होता है.. इसको खाने में बड़ा मज़ा आता है.. लेकिन अगर आप देश के चार महानगरों में नहीं रहते हैं, तो गाजर का हलवा सिर्फ ठंड के मौसम में, यानि नवंबर से लेकर मार्च तक ही बनाया और खाया जा सकता है..। जिस तरह गाजर के हलवे का एक मौसम होता है, ठीक उसी गाजर मूली की तरह हमारे देश में मौसम आता है, Awards का..।  इस मौसम में, दीवाली से लेकर होली तक, देश में इतने सारे Awards बंटते हैं, जितने पूरी दुनिया में पूरे साल भर भी नहीं बांटे जाते होंगे..। टेलीविज़न पर इन तीन चार महीनों में मज़ाल है कोई ऐसा Sunday आ जाए, जिस दिन शाम को कोर्ई Awards न आ रहा हो.. और जिन Channels में कोई Awards नहीं आ रहा होता है, वो Awards से इतना प्यार करते हैं, कि पुराने, पिछले साल का Awards ही फिर से दिखा देते हैं..। TV पर Awards के इसी प्रेम से प्रेरित होकर, आईए हम आपको बताते हैं, कि कैसे बनते हैं ये Awards..

सामग्री :  
भारत में Awards बनाने वाले कई हलवाई बाज़ार में बैठे हैं। जिस हलवाई का जितना बड़ा नाम, उसका award भी उतना बड़ा..। लेकिन Award बनाने वालों की List में शामिल होने के लिए ये जानना सबसे ज़रूरी है, कि आपसे कोई Award क्यूं ले। इसके लिए, या तो आप कोई अखबार के मालिक हों, या फिर फिल्मी गपोड़वाज़ी वाली पत्रिका निकालते हों.. या फिर किसी ऐसे Channel को चलाते हों, जिसकी TRP अच्छी खासी हो.. या फिर कोई ऐसी गुटखा कंपनी चलाते हों, जिसके लिए कई फिल्मी सितारे विज्ञापन करते हों।

दूसरी सामग्री जो Awards बनाने के लिए चाहिए वो है, Award Functions की पहली Line में बैठने वाले कुछ कुछ अच्छे चेहरे। इसमें अमिताभ बच्चन का होना बहुत ज़रूरी है, और उनके आसपास ही कहीं दूसरी या तीसरी Row में रेखा का बैठना भी आवश्यक है, क्योंकि जिस Channel पर ये Awards Show आने होते हैं, उसको अमिताभ की बात पे, रेखा का, और रेखा की बात पे अमिताभ का Rection दिखाने की बड़ी पुरानी और गंदी आदत होती है। वैसे कुछ लोगों ने आजकल शाहरूख खान और प्रियंका चोपड़ा से भी काम चलाना शुरू कर दिया है.. ।

इसके अलावा एक बहुत ज़रूरी सामग्री है, Lifetime Achievement Awards की। कायदे से तो ये सम्मान उस पुराने कलाकार को मिलना चाहिए, जिसने फिल्मी जगत में अपना बहतरीन योगदान दिया हो, ताकि ऐसे कलाकार का परिचय आज की पीढ़ी से हो सके, वो भी उसके योगदान से रूबरू हो सके। लेकिन इस तरीके ये पूरा Segment बड़ा उबाऊ सा हो जाता है, और लोगों के Channel बदलने का खतरा सर पर मंडराता है।  इसलिए हमारे Award बनाने वाले हलवाईयों ने इसका एक नया तरीका निकाला है..। ये Awards वो किसी ऐसे पापा, मम्मी, चाचा या daddy को देते हैं, जिनके बेटे या बेटी, इस वक्त सफल् हैं..। इस "Celebrity Daddy या Mummy" वाले एक "तीर" से कई शिकार हो जाते हैं। एक तो वो Hero खुश हो जाता जिसके daddy को ये Award मिलता है, और वो खुश होकर, free में या कम पैसों में dance कर देता है। इसके अलावा Hero अपने पापा के लिए एक Emotional Speech भी दे देता है, जो Channel में कई दिन तक Promo moment का काम करती है। फिर कोई माई का लाल ये सवाल भी नहीं कर सकता कि 'भई इनसे भी बड़े बड़े दिगज्ज पड़े हैं, उनको ये Award क्यों नहीं, और पापाजी को ये Award क्यों..?' और आखिर में, पापाजी के सम्मान में भले कोई चाहे न चाहे, लेकिन बेटा जी के सम्मान की खातिर सब लोग खड़े हो जाते हैं, जिससे ये आभास होता है, कि देखा Industry हमारे पुराने लोगों का कितना सम्मान करती है.. और standing ovation देती है.. ।

अब एक और जो सबसे बड़ी ज़रूरी सामग्री चाहिए, वो है Host. ये Host ऐसे होने चाहिए जिन्होंने भले ही आजतक कोई Functions host न किया हो, लेकिन इनकी कोई फिल्म ज़रूर पिछले 2-3 महीनों में आई हो। ये भले दो Line पढ़कर भी ठीक से न बोल पाएं, लेकिन इन्हें Comedy करना आना चाहिए.. जी हां, हमारे देश में Awards Function Comedy Circus या नौटंकी से कम नहीं होते। ये Host किसी भी रूप में आ सकते हैं, ये महिला बन कर आ सकते हैं, ये कोई Character बनकर भी आ सकते हैं। Host जितनी उटपटांग हरकते Stage पर करेंगे, Award Functions की शोभा में उतने ही चांद लगते जाएंगे। 

Award बनाने का तरीका
सामग्री के बाद, आईए हम आपको इन Awards को बनाने की विधि बताते हैं।
सबसे पहले एक किसी ऐसे Writer को पकड़िए, जिसकी Comedy पर अच्छी पकड़ हो..। इस Writer की सहायता से, एक ऐसी चटपटी मसालेदार Script तैयार करवाईए जिसमें फिल्मों की, खासतौर से Flop फिल्मों और उसके actors की जमकर Insult की गई हो.. (चिंता मत करिए, awards का भले इन बातों से कोई लेना देना न हो, लेकिन हमारे यहां awards इसी तरह पेश किए जाते हैं।) इन Insulting बातों को लेकर, stage पर किसी से कहासुनी बहस या लड़ाई झगड़ा हो जाता है, तो ये कोई समस्या नहीं, बल्कि फायदे की बात है.. क्योंकि ये तो उत्तम TRP की Gurantee है।

अब इस Script को Hosts के साथ मिलकर खूब पकाईए.. इतनी पकाईए कि अगर ये पकाऊ भी हो जाए, तो कोई नुकसान नहीं..। अगर Award Functions के Boring Jokes पर कोई नहीं हंस रहा है तो चिंता करने की जरूरत नहीं, क्योंकि बाद में इनके पीछे Stock Laughter Track यानि गोदाम में पड़ी हुई हंसी की पुरानी Recording बजा दीजिए, देखने वाले दर्शक को ये लगेगा कि पूरी Industry हंस हंस के लोटपोट हो रही है, शायद ये Joke उसे ही समझ में नहीं आया।

Award को बनाते समय इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है, कि हो फिल्मी हस्तियां इसे देखने आएं, वो कम से कम 5 Min ज़रूर बैठें..। क्योंकि उनके 5 Min के shots की Recording को आप पूरे तीन घंटे बार बार इस्तेमाल कर सकते हैं। शायद इसीलिए, आपके अक्सर देखा होगा कि TV पर अमिताभ बच्चन, जो ताली Shahrukh Khan के dance के लिए बजाते हैं, वही ताली Yash Chopra के Lifetime achievement Award के लिए भी काम आती है। 
    
अब सबसे ज़रूरी बात, आप ये तय कर लीजिए, कि आप awards उन हस्तियों को ज़रूर दें जो आए हैं, यदि उन्होंने कोई award नहीं भी जीता है, तो कोई ऐसी category बना दें, जिसमें उनकेा award मिल जाए.. वर्ना अगली बार आप अपने award में उनके पधारने की आशा मत कीजिए..।

आखिर में, भले खर्चा ज़्यादा हो जाए, लेकिन ये ज़रूर तय कीजिए कि आपके Awards में कोई Super star ज़रूर ठुमका लगा रहा हो.. क्योंकि इस सुपरस्टारी ठुमके के कई फायदे हैं। पहला फायदा तो आपके awards को एक नाम मिल जाता है, कि "भई उसमें तो फलां फलां नाच रहा है, ज़रूर कोई बात होगी"। दूसरी बात इस सुपरस्टारी ठुमके के कारण आपको किसी main channel पे अपना कार्यक्रम बेचना आसान हो जाएगा और कीमत भी अच्छी मिल जाएगी.. और तीसरी बात ये कि आप इस सुपरस्टार को आखिर में नचवाएंगे, इसलिए सारी Industry तब तक जमकर बैठी रहेगी, कि कहीं हमारे सुपरस्टार साहब बुरा न मान जाएं..।

ये कुछ नुख्से हैं, जिनकी सहायता से आप इस देश में एक अच्छा सा, टिकाऊ सा, और बिकाऊ सा award show बना सकते हैं। आशा है, मेरी इस जानकारी से, इस देश की हर गली, मोहल्ले और घरों में कुछ नए नए awards का जन्म होगा, जो हमें आने वाले भविष्य में TV पर देखने को मिलेंगे..। 
  
RD Tailang
Mumbai


  

21 August 2012

My Interview In Mid-day Mumbai


Meet the guy behind Big B's iconic dialogues

Scriptwriter R D Tailang is responsible for some of the most recognised catchphrases on the actor's popular TV game show

August 18, 2012
MUMBAI
Shakti Shetty
Live a magnificent Lifestyle. In spacious 3 BHK flats @ Mumbai
oberoirealty.com/oberoi-splendor/
Amitabh Bachchan is known for some of the most famous on-screen dialogues in the history of Bollywood cinema. However, many a times, the audience rarely gets to know the real face behind such iconic dialogues. We introduce R D Tailang to you, the man responsible for some of the most recognised catchphrases on the actor’s popular TV game show.
R-D-Tailang
R D Tailang
Tailang, who is the scriptwriter of the show, has also lent his pen to films like Ajab Prem Ki Ghazab Kahani and Arjun: The Warrior Prince. His job on the game show, however, is to make sure every single episode has a captivating beginning and a memorable end. And the show’s sixth season is all set to start soon, with Big B busy rehearsing for it these days.
Ask him about his experience with Bachchan and SRK, who hosted season three of the same show, Tailang says, “Bachchanji has the mix of seriousness as well as humour. He emphasizes a lot on diction and when he talks. Even his simple line like, ‘yuh gaya aur yuh aaya’ turns effective. Shah Rukh Khan made the most of his ability to make people laugh. He was engaging, cool and represented youth.”
The writer has managed to remain an integral part of the show from its very inception. So now when you hear AB mouthing “panchkoti mahamoney” and “gadhiyal babu”, you know it’s Tailang weaving those magic words!
Lessons from Big B
Tailang even admitted to having been reprimanded by Big B himself for being a bit careless on his punctuation during the initial days of the show. As they say, all’s well that ends well!  

My Interview in Indiantelevision.com

 

R.D. Tailang
Script Writer

By: Chikita Kukreja



My growing up years
I was born and brought up in Mandla which is in Madhya Pradesh. A small village from where we had to walk 20 kms to reach the main road. Since, my father was in the service class we led a very simple life. So, basically, half of my life was spent in a place which did not bear roads, and the second half, in a place like Mumbai, among rushing vehicles, intelligent lights and sets ofKBC. It's been 13 years since I've been in this city of dreams.

My big break with KBC
I used to make sketches during my childhood. So, once when I had come to Mumbai for a seven day vacation for the first time and got my sketches along. I decided to try my luck at a newspaper office. I went to an afternoon paper called Dopeher, just entered the editor's cabin to show my artistic work. Within no time he offered me a job, and I willingly took up the proposal. I joined them as a cartoonist and later shifted to hard core journalism. I worked on various beats like crime, sports, film reviewing and even interviewing celebrities.

Later, I joined Plus Channel with Mahesh Bhatt and Amit Khanna. And from then on, there was no looking back. I soon realized that writing was a good field and maybe I could carve a niche in it. My first big assignment came with Farida Jalal's Star Yaar Kalakar and then Shekhar Suman's Movers and Shakers happened.

The big break came with KBC. Writing for Bachchanji has been an awesome experience. I've worked for him for two years and have written 350 episodes for him. Writing for Bachchanji at the beginning of his career is the biggest award a writer can get. It gives me the same feeling an actor would get on receiving an Oscar.


I begin my daySleep is a must for me. It's like; if possible, I can sleep for 12 hours at a stretch. Normally I get up at around 10 or sometimes even 11. Then, I literally lick the newspaper for say 3 odd hours. It is a must for me. Now there is no time for breakfast so I land up eating my lunch. I am very lazy at times so I prefer to rest for a while after that.

Exercise mantra

Sleeping is really my passion. Even if I try I just cannot get up early in the morning.. Some of my friends do try to influence me to stick to a regime, but then after a few days it's back to square one. So, it's me and my dear bed again.

Diet Mantra
I am a strict vegetarian; no eggs, no onion and in fact at my mother's place, we are not even allowed to bring garlic. I am not a real foodie. I don't follow any kind of diet mantra, at any point in time. It's just not my cup of tea. Instead, whenever am upset or annoyed, my wife knows which string to pull. It's rice with tomato sabzi.

To dine out we love going to Yokos, or grab a pizza at Pizza Hut. And though I am not a Gujarati , I love the Gujarati thali at Rajdhani.

Shopping

I hate shopping but my wife loves it. It's like if I have to purchase a shirt and if I happen to like a belt too, I will return home with the shirt and go for the belt the next time. I hate window shopping. I am not at all brand conscious but I am definitely quality conscious. We normally shop at Inorbit, as it is very close to our place or else from Infinity in Andheri (W).


Gizmos and Gadgets
I won't call myself a gizmo freak, but yes, I can call myself as an extremely advanced writer.I am technically very sound. I have a blue tooth attached to my computer, my printer and my mobile phone. I do all my editing work on my advanced computer; right from editing clips to making my own ring tones.

I possess a Nokia 6062 and an Ipod, and very shortly I plan to buy a plasma for myself. My car is fully equipped with a DVD player and a monitor.

Religion
I have been very lucky in my life. It's like, if my life is a journey by car then I am sure that God is on the driving seat. I believe in the almighty. He has always been on my side right from the very beginning. Everything happened in my life rather unexpectedly. I thank God for all this..

Favourite car
I drive a Scorpio. I just love my car. It's spacious and we love going for long drives in it.

Reading
To be very frank, I hate reading thick books and novels. Just a look at them makes me perspire. I am happy being a script writer and I don't think I have any qualities of a writer. But I make it a point to religiously read all regional newspapers. It's an essential part of my schedule and helps me connect things better while I am scripting.
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04 July 2012

… और मेरा घर टूट गया



.. और मेरा घर टूट गया। टूटने से यहां मतलब है, कि हालातों के आगे, समय के आगे, और ख़ुद को उपयोगी बनाए रखने की मांग के आगे मेरा घर टूट गया…। जो लोग मेरे घर तैलंग भवन से परिचित नहीं है, उन्हें में बता दूं, कि मेरे शहर टीकमगढ़ मघ्यप्रदेश का तैलंग भवन यानि मेरा घर एक जाना माना ठिकाना था.. इसकी इमारत का कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं था, लेकिन मज़ाल है कि रिक्शे वाले ने कभी पूछा हो, कि भाईसाब ये कहां पड़ता है। कई बार तो चिठ्ठियां सिर्फ Surname के दम पर ही इस घर में चलीं आती थीं.. अड़ौस पड़ौस के लाग अपने अपने पते पर, लिखते थे, "तैलंग भवन" के सामने, आगे या पीछे, ताकि ये सुनिश्चित हो जाए, कि उनकी चिठ्ठी सही जगह पहुंच जाएगी। Postman को भी बड़ी आसानी हो जाती थी, वो सारे मोहल्ले की चिठ्ठियां हमारे यहां डाल जाता था, क्योंकि लगभग हर चिठ्ठी पर लिखा होता था, तैलंग भवन के पास.. उसके बाद हमारी Duty हो जाती थी, कि वो चिठ्ठियां सही ठिकानों तक पहुंचा दें.. जिन घरों में जवान लड़कियां होती थीं, उनकी चिठ्ठियां पहुंचाने में हमें कुछ ज़्यादा ही दिलचस्पी रहती थी। मेरा वो घर अब शायद अपने अंतिम दिनों में है...

बुढ़ापे का परिणाम लगभग एक सा होता है.. चाहे बूढ़ा इंसान हो, या बूढ़ा मकान.. या तो वो टूट जाता है, या बिक जाता है… आखिर मेरा घर भी कब तक अपने आपको बचाए रखता, बूढ़ा जो हो चला था। बुढ़ापे को अक्सर अपनी उपयोगिता सिद्ध् करती रहनी पड़ती है, मेरा घर भी कई सालों से ये कोशिश कर रहा था, वो लगातार ये एहसास दिला रहा था, कि अभी भी वो उपयोगी है, वो बार बार बुलाता था, कि आओ देखो, मेरी मोटी मोटी दीवारों में आज भी वही गर्मी और प्यार है, जिसके बीच तुम पले बढ़े हो। लेकिन कहीं न कहीं घर ये जानता था, कि नए मकानों के लटकों झटकों में उसकी पारंपरिकता को कौन पूछेगा। उसे ये एहसास तो हो गया था, कि वो एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है..। मैं जब भी Mumbai से उस घर में जाता तो उसे मेरे आने की खुशी तो होती थी, लेकिन इस बात की आशा कतई नहीं होती थी, कि अब उसका भला होगा। क्योंकि अक्सर उड़ते उड़ते आवाज़ें उसकी दीवारों तक भी पहुंच जाती थीं, और दीवारों के तो कान होते ही है.. मैं अक्सर Mumbai के चिकने घरों और सुविधाओं की बातें करता था, अक्सर मुंह से निकल जाता था, कि अब इस घर में पैसा लगाना बेकार है.. तो वो सिर झुकाए चुपचाप कसाई के बकरे की तरह कातर निगाहों से देखता था, कि उसकी गर्दन पर छुरा कब पड़ेगा। वो अब अपने आपको भी देखने लगा था.. उसकी दीवारों में POP की चिकनई नहीं थी, उसके दरवाज़े खुलते बंद करते समय आवाज़ करते थे, कोई कमरा ऊंचा था तो कोई नीचा.. और दरवाजों की चौखटें इतनी नीची की दिन में एक दो बार सिर फूटना तो आम बात थी.. लेकिन फिर भी जीवन की आशा तो मरते हुए इंसान के मन में भी होती है। उसे इस बात का एहसास था, कि वो हमें याद दिलाने में कामयाब हो जाएगा, कि उसके पास आज भी वो बड़ा आंगन है, जहां घर के बच्चे खेला करते थे, औरतें शाम को हंसी ठिठोली किया करती थी, और जहां बिना मौकों पर भी हारमोनियम और ढोलक बज उठते थे.. जहां सारा परिवार अपने सुख दुख बांटता था, एकदूसरे के घर जाने से पहले पूछना नहीं पड़ता था.. उसे पता था कि उसका दिल बड़ा है, और शायद इसी दम पर वो अपनी साख बचाए रख सकता है और हमें अपने महत्वपूर्ण होने का एहसास दिला सकता है... लेकिन आजकल जब इंसानों के दिल की कोई कीमत नहीं तो मकानों का दिल कौन देखता है। मेरा घर ये नहीं समझ पा रहा था, कि यही जीवन है, हम जिन बुज़ुर्गों की सीख पर चलकर बड़े होते हैं, बाद में उन्ही सीखों में हमें रूढ़ीवादिता और पिछड़ापन नज़र आने लगता है.. ये समय का फेर है, इससे भला आजतक कोई बचा है..?

जब मेरा घर बना था, तब इस सोच के लोग थे, कि घर की आधी रोटी भली.. इसीलिए मेरे घर में भी रोनक रहती थी, छतों से लेकर सीढ़ियों पर कोई न कोई मौजूद होता ही था। हर उम्र के, हर स्वाभाव के, हर तबके के घर के सदस्य.. लेकिन समय का ऐसा फेर हुआ कि मैं मुंबई चला आया, और देखते देखते घर की आधी भली की सोच मिट गई, लोगों के लिए रास्ता खुल गया, उन्हें बड़े घर में घुटन होने लगी, शहर के छोटे मकानों में तरक्की का एहसास होने लगा.. और देखते देखते भीड़भाड़ वाला घर खाली होता गया.. और हालत ये हुए, कि उस घर में कमरे ज़्यादा और रहने वाले कम हो गए.. मोहल्ले की रोनक हमारा घर अब शाम होते ही एक बड़ी अंधेरी छाया नज़र आने लगा.. 

लोग कहते हैं, कि मेरे घर को किसी की नज़र लग गई। आज वो खाली है, कोई रहने को तैयार नहीं.. नई पीढ़ी में कुछ एक को छोड़कर तो बाकी किसी को उसके अंदर के रास्ते भी पता नहीं होंगे..। अब ये तो पता नहीं किसी की नज़र लगी या नहीं, लेकिन ये बात भी है, कि हमने अपने घर की कभी नज़र भी नहीं उतारी.. हो सकता है, जब किसी की नज़र लग गई हो जब जब वहां साहित्यकार गर्व के साथ बैठकर अपनी रचनाएं पढ़ते थे, संगीत की महफिलें, कवि गोष्ठियां, चर्चाएं, हंसी, ठहाके तैलंग भवन के अंदर से निकल निकल कर आसपास के घरों को मुंह चिड़ाते थे.. एक तरह से टीकमगढ़ शहर का सांस्कृतिक अड्डा था, लोग सलाहें लेने आते थे, शहर में कोई नामी कलाकार आता था, तो उसे अपने आप हमारे घर लाया जाता था, जैसे मेरा घर किसी राजा की चौखट हो, जहां पर सलाम करके जाना ज़रूरी है... लेकिन राजा की चौखट न सही, लेकिन राजगुरू का घर था तैलंग भवन। हम पीढ़ियों से औरछा राज्य के राजवंश के राजगुरू थे… जी हां वही ओरछा जहां के महलों के सामने Katrina Kaif Slice का Juice पीती नज़र आती हैं, उसी राज्य के राजा हमारे यहां सर झुकाकर आते थे, चप्पले पहन कर आना राजा को भी Allowed नहीं था.. मगर वक्त ने राजाओं को खत्म कर दिया फिर हमारे इस अदने से घर की क्या बिसात..

ये शेर तो आप सब ने सुने ही होंगे..

याद रख, सिकंदर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनों हाथ खाली थे

अब न वो सिकंदर है और न उसके साथी है
जंगजू न पोरस है और न उसके हाथी है

कल जो तनके चलते थे अपनी शान-ओ-शौकत पर
शम्मा तक नहीं जलती आज उनकी तुर्बत पर

ऐसा दुनिया में पहली बार नहीं हो रहा था, कि हमारा घर हमसे दूर हो रहा हो.. दरअसल ऐसा सारे देश में ही हुआ है, या हो रहा है, पुराने घर अब सभी से दूर हो रहे हैं.. क्योंकि अब पुराने घर, आंगन, तुलसी का पौधा, आम का पेड़, हमें सुकून तो देते हैं, लेकिन जीवन की सुविधाएं, सुरक्षा और पैसा नहीं दे पाते.. और सुकून से दिल तो बहल सकता है, लेकिन घर नहीं चलता.. इसलिए सभी अपने छोटे शहर के बड़े घरों से दूर होते होते, बड़े शहर के छोटे घरों में आने को मजबूर हो गए। और बड़े घर इस बदलाव पर हैरानी से हमें देखते हैं, कि न जाने कहां कब क्या हो गया...। हमारे घर के दूर होने पर भले ही हमें दुख लगे, लेकिन उसका भविष्य हमेशा की तरह उज्जवल ही है। आज उसमें रहने वाले वाशिंदों का भले ही पलायन हुआ हो, और वो दूसरे शहरों में बस गए हों, लेकिन सबका भला ही हुआ है। और ये ज़रूरी था, गतिशील होना विकास की निशानी है, क्योंकि गति में ही प्रगति है। बहता पानी हमेशा अच्छा होता है, रूका पानी सड़ जाता है, खून जब तक धमनियों में बहता रहता है, जीवन चलता रहता है, रूक जाता है, तो उस अंग को खराब कर देता है.. एक फूल गिरता है तो चार नए खिलते हैं, प्राचीन को नवीन के लिए जगह बनानी ही पड़ती है। आज भले ही तैलंग भवन में रहने वाले वाशिंदे बदल रहे हों, और वो इसे इसके मौजूदा हाल में रखें या फिर पुनर्निमाण करें, तैलंग भवन को एक नया रूप मिलेगा, उसमें नई उर्जा का संचार होगा..। हर व्यक्ति के साथ की एक समय सीमा होती है, हमारे अपने भी कुछ समय बाद हमसे बिछड़ जाते हैं, इसी तरह जीवन चलता है, और इसी तरह तैलंग भवन भी चलेगा, भले ही उसका स्वरूप दूसरा हो, नाम भी दूसरा हो, लेकिन उसकी आत्मा वही रहेगी.. मैंने कौन बनेगा करोड़पति के लिए कुछ पंक्तियां लिखीं थी, जो मैं अपने घर को समर्पित करना चाहता हूं –

अपना घर अपने जीवन का आधार है, जिंदगी भर की मेहनत का आभार है, बरसों की उम्मीदों का आकार है,
घर की हर चीज़ में यादों का बसेरा होता है, बुर्जुगों की दुआओं का डेरा होता है,
और अपने घर में एहससास भी वैसा होता है, जैसे कोई बच्चा अपनी मां की गोद में आ के सोता है…

मेरा घर जिसके साथ भी रहे, हमेशा आबाद रहे..

RD Tailang
© Sequin Entertainment Pvt. Ltd 2012.
Mumbai