21 June 2013

Jia की मौत, और काला Bollywood

जिस दिन Jia Khan ने खुदकुशी की, उसके ठीक दो दिन बाद "Page 3 निवासी" Shobha De उठीं, एक काले Paint का डब्बा उठाया, और चल दी Bollywood पर कालिख पोतने। उन्होंने और उन जैसे कई और "Page 3 निवासियों" ने अपने अपने लेखों में Film Industry की धज्जियां उड़ा दीं। ऐसा लगने लगा मानो Bollywood film sets पर नहीं, होटलों के बिस्तरों में पाया जाता है। यहां लोग फिल्म बनाने के लिए इक्ठ्ठे नहीं होते, बल्कि शराब, लड़कियां और Drugs में डूबने के लिए मिलते हैं। Shobha De की मानें तो फिल्म जगत वो अंधा कुंआ है, जिसमें जो भी झांकता हैं, मौत के काले अंधकार में समा जाता है। Shobha De के Bollywood के आगे, Al qaida और Taliban रामराज्य जैसे लगने लगे।

इससे आगे का लेख Shobha De और उन जैसे कई और "Page 3 निवासियों" के लिए मेरा जवाब है।

मुझे पक्का यकीन है Shobha De ने अपनी जिंदगी में, कभी न कभी फिल्में लिखने का ज़रूर सोचा होगा, नहीं तो इतनी कोशिश ज़रूर की होगी कि उनकी कहानी पर फिल्म बने, ये भी नहीं तो फिर अपनी किसी किताब को फिल्मी हस्ती से Lauch कराने की कोशिश ज़रूर की होगी.. ये सब न भी हुआ हो, तो उन्होंने ज़रूर फिल्मी दोस्त बनाने की कोशिश की होगी, बनाए होंगे, और इस समय भी उनके फिल्मी दोस्त होंगे। लेकिन अचानक Shobha De को ये फिल्मी दुनिया अंधेरी और बुराई की दुनिया नज़र आने लगी, क्योंकि Jia Khan ने व्यक्तिगत कारणों से खुदकुशी कर ली।

लोग कहते हैं, कि फिल्मी दुनिया में सिर्फ Success चलती है, और जो सफल होता है, लोग उसी के पीछे भागते हैं। जी हां ऐसा होता है, बिल्कुल होता है, क्योंकि सफल् आदमी सबके सामने होता है, हंसता, खुश, मुस्कुराता, अपनी सफलता पे इतराता.. और असफल आदमी खुद ही दुनिया से छुपता छुपाता, दुनिया के सामने आने से डरता है, इसलिए वो किसी के सामने, किसी के ख्याल में भी नहीं होता। Shobha De के चाहने वाले तो फिल्मी दुनिया से नहीं हैं, फिर उनमें से कितने चाहने वाले हैं, जो उनके पति को भी जानते होंगे, वो क्या करते हैं, खुश है, या दुखी हैं, किसी को क्या पता। और ऐसा ये फिल्मी दुनिया में नहीं होता, हर जगह होता है..। Veshno Devi सफल् मंदिर है, इसलिए लोग गिरते पड़ते भी पहाड़ चढ़ कर पहुंच जाते हैं, वहीं, एक शहर के कोने में अनजान मंदिर धूल खाता खंडहर होता रहता है, कोई वहां झांकता भी नहीं है, क्योंकि वो सफल नहीं है। Shobha De लेखन की दुनिया से जुड़ी हैं, क्या उन्होंने खुद कभी ये ख्याल रखा है, कि KP saxena ने फिल्म Lagaan के Dialogue लिखने के बाद क्या किया, क्या उनकी कोई और किताब आई, उनका घर का खर्चा कैसे चल रहा है? उन्हें अखबार की दुनिया के कितने लोगों का पता है, कि वो किस हालत में अपनी गुजर बसर कर रहे हैं।

चलिए लेखन की दुनिया को छोड़ते हैं, Business World से ही ले लें, कभी अंबानी ने चिंता की कि Mobile आने के बाद बेचारा Pager Manufacturer क्या कर रहा है, उसका घर कैसे चल रहा है। या Pen drive आने के बाद Floppy maker क्या कर रहे हैं, या Reliance Fresh के बाद Local सब्जी वाला अपना घर कैसे चला रहा है। जिस तरह से बाहर की दुनिया में हर एक इंसान की देखभाल नामुमकिन है, उसी तरह फिल्मी दुनिया में कौन अपने Flat में क्या कर रहा है, इसकी खबर रखना नामुमकिन है। और ऐसा भी नहीं है, जब भी फिल्मी दुनिया को किसी के बारे में पता लगा है, तो उसने दिल खोल कर उस इंसान की मदद की है। अगर सैकड़ों किसानों की आत्महत्या के बाद भी महाराष्ट्र अगर काला राज्य नहीं हुआ, तो Jia Khan की मौत के बाद फिल्मी दुनिया काली और गंदी दुनिया कैसे हो गई।

किसी का आत्महत्या करना उस इंसान की मानसिक हालत पर निर्भर करता है। आत्महत्या करने के बहुत से व्यक्तिगत कारण होते हैं। लेकिन ये आरोप लगा है, कि Jia को Industry ने काम नहीं दिया, इसलिए वो बहुत परेशान थी । इस हिसाब से तो देश के हर उस नौजवान को आत्महत्या करनी चाहिए जो बरसों नौकरी के लिए ठौकरें खाते रहते हैं। उस फिल्म निर्माता को आत्महत्या कर लेनी चाहिए, जिसकी करोड़ों रूपये और बरसों की मेहनत के बाद बनाई गई फिल्म को जनता और Critics दो मिनिट में बरबाद कर देते हैं। या फिर उस साबुन निर्माता को भी आत्महत्या कर लेनी चाहिए, जिसके Product की तरफ जनता देखती भी नहीं। जब हम इन घटनाओं के लिए जनता को जिम्मेदार नहीं मानते तो फिर किसी एक Hero या Heroine की मौत की जिम्मेदार पूरी फिल्मी दुनिया कैसे हो जाती है?

ज़रा इस तरफ भी देख लिया जाए, जब कोई Hero या Heroine सफल होते है, तो वो कितने लोगों से अपना नाता तोड़ लेते है। वो खुद भी तो अपने इर्दगिर्द एक ऐसा मजबूत दायरा बांध लेते है, जिसको भेद पाना मुश्किल होता है। वो अपनी सफलता के साथ खुद अकेले अच्छा महसूस करते है, फिर होता ये है, कि लोग धीरे धीरे उससे कटने लगते हैं, उसको उसकी मर्जीं के हिसाब से अकेला छोड़ देते हैं। लेकिन जब सफलता चली जाती है, तो बाहरी दुनिया से वो इंसान कट चुका होता है, और अंदर की दुनिया में उसके पास कोई बचता नहीं है..। उसके अकेलेपन की किसी को भनक भी नहीं लगती है, कि इस दायरे के अंदर एक अकेला इंसान है जो अब दुखी हो रहा है। जब आप किसी को अपनी सफलता में शामिल नहीं करते, तो वो आपकी असफलता में भी शामिल नहीं होता। अमिताभ बच्चन को छोड़कर ऐसे कितने कलाकार हैं, जो अपने प्रशंसकों की हर चिठ्ठियों के जवाब भेजते हैं। उनकी तरह कितने लोग हैं, जो अपने चाहने वालों को नाम के साथ जन्म दिन की शुभकामनाएं अपने Blog पर देते हैं। जब आप लोगों की उम्मीदों को रोंद कर उनसे कट जाते हैं, तो ये उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए, कि लोग अपने आप आके आपसे जुड़ जाएं। किसी को सपना नहीं हो रहा है, कि आपके साथ जीवन में क्या घट रहा है।    

फिल्मी दुनिया ही क्यों, एक कलाकार की तनहा मौत का जिम्मदार आम जनता को भी क्यों न बनाया जाए, क्योंकि जब वो कलाकार Hit होता है, सफल् होता है तो यही जनता उसका पीछा करती है, घंटों घर के बाहर इस आशा में खड़ी रहती है, कि वो अब आएगा और 10 Second हाथ हिलाकर चला जाएगा । वो किसी को अपनी Shooting का, अपने Hotel का पता नहीं बताता है, फिर भी ये जनता किसी भी तरह से उसका पता लगा कर वहां पहुंच जाती है, वो अपने Honeymoon पर हो, Dinner पर हो, या किसी के अंतिम संस्कार में, ये जनता वहां भी उसका नाक में दम कर कर देती है, लेकिन यही जनता तब क्यों पता नहीं लगाती है, जब वो कलाकार परदे से सालों साल गायब रहता है। Rajesh Khanna के अंतिम दिनों में कितने उनके चाहने वाले उनके घर पर खड़े रहते थे? उनको खून से ख़त लिखने वाली लड़कियां उनके अंतिम दिनों में अपनी चाहत का एक भी ख़त क्यों नहीं लिख पाईं, शायद ऐसा कोई एक ख़त उनकी जिंदगी में चंद दिनों का और इज़ाफा कर देता। Nishabd के बाद कितने ही ऐसे लोग होंगे जिन्होंने Jia Khan के Posters अपने Bedrooms में लगाए होंगे, क्या हो गया था उनको, अब वो Jia के घर बाहर क्यों नहीं खड़े रहते थे.. क्योंकि एक भी प्रशंसक ने Facebook या Twitter पे लिखा हो, कि We miss you jia.. 2010 के बाद तुम्हारी कोई फिल्म क्यों नहीं आई। लोग कहते हैं, Shamshad Begum की बहुत ही गरीबी में मौत हुई, ऐसी मौतों के लिए अगर फिल्मी दुनिया जिम्मेदार है, तो आम जनता या वो लेखक भी तो जिम्मेदार हैं, जो मरने के बाद Facebook या Twitter पे RIP Golden Voice of India लिखते हैं। आज तक किसी ने ये सवाल तो नहीं उठाया कि जब Meeka और Atif Aslam गा सकते हैं, तो Shabbir Kumar, Mohd Aziz, Kumar Sanu को कोई गाना क्यों नहीं मिल रहा है..?

फिल्मी दुनिया को Target बनाना बहुत आसान है, क्योंकि ये दुनिया जवाब नहीं देती। ये दुनिया किसी से हाथापाई नहीं करती.. सबका खुली बाहों से स्वागत करती है। कितनी ऐसी कहानियां हैं, जहां राह चलता इंसान यहां आकर दुनिया की आंखों का तारा हो गया। कहते हैं ये बेरहम दुनिया है, मैं उन लोगों से कहना चाहता हूं, कि अगर इस दुनिया के दिल नहीं होता तो शायद आधे से ज्यादा Super stars और Heroines उन्ही सड़कों पर घूम रहे होते जहां से वो उठकर आए हैं। फिल्मी दुनिया का सब कोई बाप बनना चाहता है, इसके बारे में सब अपनी राय देना चाहते हैं। फिल्में बनाता कोई है, लेकिन उसका Review करने के लिए सैकड़ौं बिन बुलाए मेहमान चले आते हैं, कोई उनसे मांगता नहीं फिर भी वो Star देने बैठ जाते हैं। वो जनता के रहनुमा बन जाते हैं.. कोई उनसे पूछे कि भई आप फिल्मी Review क्यों करने बैठ जाते हैं, हमने तो नहीं कहा ? आप Lux के नए साबुन का Review तो कभी नहीं करते, कि नहाने में अच्छा है, खुशबू अच्छी है, हाथ से फिसलता बहुत है। या फिर आप Bata की नई चप्पल का Review नहीं करते कि चलने में बहुत ही Smooth है, और काटती भी नहीं है, लेकिन फिल्मी पंड़ित बनकर फिल्म की कुंडली लेकर बैठ जाएंगे बांचने को। क्योंकि फिल्मी दुनिया के लिए वही कहावत है, गांव की लुगाई सबकी भौजाई..।    

आत्महत्या चाहें गांव के किसानों की हो, Result आने के बाद Students की हो, या जिंदगी से परेशान किसी कलाकार की.. ये हमारे समाज के लिए बहुत ही दुख की बात है, और इसकी जिम्मेवारी मरने वाले के घर, परिवार, दोस्त, रिश्तेदार, समाज और हम सबकी बनती है, इसमें सिर्फ फिल्मी दुनिया को दोष देना, खुद की जिम्मेदारी से बचना है…। Jia की आत्मा को शांति मिले, ईश्वर से यही प्रार्थना है..

RD Tailang
Mumbai


  

13 June 2013

आओ Awards बनाएं....


गाजर का हलवा बड़ा स्वादिष्ट होता है.. इसको खाने में बड़ा मज़ा आता है.. लेकिन अगर आप देश के चार महानगरों में नहीं रहते हैं, तो गाजर का हलवा सिर्फ ठंड के मौसम में, यानि नवंबर से लेकर मार्च तक ही बनाया और खाया जा सकता है..। जिस तरह गाजर के हलवे का एक मौसम होता है, ठीक उसी गाजर मूली की तरह हमारे देश में मौसम आता है, Awards का..।  इस मौसम में, दीवाली से लेकर होली तक, देश में इतने सारे Awards बंटते हैं, जितने पूरी दुनिया में पूरे साल भर भी नहीं बांटे जाते होंगे..। टेलीविज़न पर इन तीन चार महीनों में मज़ाल है कोई ऐसा Sunday आ जाए, जिस दिन शाम को कोर्ई Awards न आ रहा हो.. और जिन Channels में कोई Awards नहीं आ रहा होता है, वो Awards से इतना प्यार करते हैं, कि पुराने, पिछले साल का Awards ही फिर से दिखा देते हैं..। TV पर Awards के इसी प्रेम से प्रेरित होकर, आईए हम आपको बताते हैं, कि कैसे बनते हैं ये Awards..

सामग्री :  
भारत में Awards बनाने वाले कई हलवाई बाज़ार में बैठे हैं। जिस हलवाई का जितना बड़ा नाम, उसका award भी उतना बड़ा..। लेकिन Award बनाने वालों की List में शामिल होने के लिए ये जानना सबसे ज़रूरी है, कि आपसे कोई Award क्यूं ले। इसके लिए, या तो आप कोई अखबार के मालिक हों, या फिर फिल्मी गपोड़वाज़ी वाली पत्रिका निकालते हों.. या फिर किसी ऐसे Channel को चलाते हों, जिसकी TRP अच्छी खासी हो.. या फिर कोई ऐसी गुटखा कंपनी चलाते हों, जिसके लिए कई फिल्मी सितारे विज्ञापन करते हों।

दूसरी सामग्री जो Awards बनाने के लिए चाहिए वो है, Award Functions की पहली Line में बैठने वाले कुछ कुछ अच्छे चेहरे। इसमें अमिताभ बच्चन का होना बहुत ज़रूरी है, और उनके आसपास ही कहीं दूसरी या तीसरी Row में रेखा का बैठना भी आवश्यक है, क्योंकि जिस Channel पर ये Awards Show आने होते हैं, उसको अमिताभ की बात पे, रेखा का, और रेखा की बात पे अमिताभ का Rection दिखाने की बड़ी पुरानी और गंदी आदत होती है। वैसे कुछ लोगों ने आजकल शाहरूख खान और प्रियंका चोपड़ा से भी काम चलाना शुरू कर दिया है.. ।

इसके अलावा एक बहुत ज़रूरी सामग्री है, Lifetime Achievement Awards की। कायदे से तो ये सम्मान उस पुराने कलाकार को मिलना चाहिए, जिसने फिल्मी जगत में अपना बहतरीन योगदान दिया हो, ताकि ऐसे कलाकार का परिचय आज की पीढ़ी से हो सके, वो भी उसके योगदान से रूबरू हो सके। लेकिन इस तरीके ये पूरा Segment बड़ा उबाऊ सा हो जाता है, और लोगों के Channel बदलने का खतरा सर पर मंडराता है।  इसलिए हमारे Award बनाने वाले हलवाईयों ने इसका एक नया तरीका निकाला है..। ये Awards वो किसी ऐसे पापा, मम्मी, चाचा या daddy को देते हैं, जिनके बेटे या बेटी, इस वक्त सफल् हैं..। इस "Celebrity Daddy या Mummy" वाले एक "तीर" से कई शिकार हो जाते हैं। एक तो वो Hero खुश हो जाता जिसके daddy को ये Award मिलता है, और वो खुश होकर, free में या कम पैसों में dance कर देता है। इसके अलावा Hero अपने पापा के लिए एक Emotional Speech भी दे देता है, जो Channel में कई दिन तक Promo moment का काम करती है। फिर कोई माई का लाल ये सवाल भी नहीं कर सकता कि 'भई इनसे भी बड़े बड़े दिगज्ज पड़े हैं, उनको ये Award क्यों नहीं, और पापाजी को ये Award क्यों..?' और आखिर में, पापाजी के सम्मान में भले कोई चाहे न चाहे, लेकिन बेटा जी के सम्मान की खातिर सब लोग खड़े हो जाते हैं, जिससे ये आभास होता है, कि देखा Industry हमारे पुराने लोगों का कितना सम्मान करती है.. और standing ovation देती है.. ।

अब एक और जो सबसे बड़ी ज़रूरी सामग्री चाहिए, वो है Host. ये Host ऐसे होने चाहिए जिन्होंने भले ही आजतक कोई Functions host न किया हो, लेकिन इनकी कोई फिल्म ज़रूर पिछले 2-3 महीनों में आई हो। ये भले दो Line पढ़कर भी ठीक से न बोल पाएं, लेकिन इन्हें Comedy करना आना चाहिए.. जी हां, हमारे देश में Awards Function Comedy Circus या नौटंकी से कम नहीं होते। ये Host किसी भी रूप में आ सकते हैं, ये महिला बन कर आ सकते हैं, ये कोई Character बनकर भी आ सकते हैं। Host जितनी उटपटांग हरकते Stage पर करेंगे, Award Functions की शोभा में उतने ही चांद लगते जाएंगे। 

Award बनाने का तरीका
सामग्री के बाद, आईए हम आपको इन Awards को बनाने की विधि बताते हैं।
सबसे पहले एक किसी ऐसे Writer को पकड़िए, जिसकी Comedy पर अच्छी पकड़ हो..। इस Writer की सहायता से, एक ऐसी चटपटी मसालेदार Script तैयार करवाईए जिसमें फिल्मों की, खासतौर से Flop फिल्मों और उसके actors की जमकर Insult की गई हो.. (चिंता मत करिए, awards का भले इन बातों से कोई लेना देना न हो, लेकिन हमारे यहां awards इसी तरह पेश किए जाते हैं।) इन Insulting बातों को लेकर, stage पर किसी से कहासुनी बहस या लड़ाई झगड़ा हो जाता है, तो ये कोई समस्या नहीं, बल्कि फायदे की बात है.. क्योंकि ये तो उत्तम TRP की Gurantee है।

अब इस Script को Hosts के साथ मिलकर खूब पकाईए.. इतनी पकाईए कि अगर ये पकाऊ भी हो जाए, तो कोई नुकसान नहीं..। अगर Award Functions के Boring Jokes पर कोई नहीं हंस रहा है तो चिंता करने की जरूरत नहीं, क्योंकि बाद में इनके पीछे Stock Laughter Track यानि गोदाम में पड़ी हुई हंसी की पुरानी Recording बजा दीजिए, देखने वाले दर्शक को ये लगेगा कि पूरी Industry हंस हंस के लोटपोट हो रही है, शायद ये Joke उसे ही समझ में नहीं आया।

Award को बनाते समय इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है, कि हो फिल्मी हस्तियां इसे देखने आएं, वो कम से कम 5 Min ज़रूर बैठें..। क्योंकि उनके 5 Min के shots की Recording को आप पूरे तीन घंटे बार बार इस्तेमाल कर सकते हैं। शायद इसीलिए, आपके अक्सर देखा होगा कि TV पर अमिताभ बच्चन, जो ताली Shahrukh Khan के dance के लिए बजाते हैं, वही ताली Yash Chopra के Lifetime achievement Award के लिए भी काम आती है। 
    
अब सबसे ज़रूरी बात, आप ये तय कर लीजिए, कि आप awards उन हस्तियों को ज़रूर दें जो आए हैं, यदि उन्होंने कोई award नहीं भी जीता है, तो कोई ऐसी category बना दें, जिसमें उनकेा award मिल जाए.. वर्ना अगली बार आप अपने award में उनके पधारने की आशा मत कीजिए..।

आखिर में, भले खर्चा ज़्यादा हो जाए, लेकिन ये ज़रूर तय कीजिए कि आपके Awards में कोई Super star ज़रूर ठुमका लगा रहा हो.. क्योंकि इस सुपरस्टारी ठुमके के कई फायदे हैं। पहला फायदा तो आपके awards को एक नाम मिल जाता है, कि "भई उसमें तो फलां फलां नाच रहा है, ज़रूर कोई बात होगी"। दूसरी बात इस सुपरस्टारी ठुमके के कारण आपको किसी main channel पे अपना कार्यक्रम बेचना आसान हो जाएगा और कीमत भी अच्छी मिल जाएगी.. और तीसरी बात ये कि आप इस सुपरस्टार को आखिर में नचवाएंगे, इसलिए सारी Industry तब तक जमकर बैठी रहेगी, कि कहीं हमारे सुपरस्टार साहब बुरा न मान जाएं..।

ये कुछ नुख्से हैं, जिनकी सहायता से आप इस देश में एक अच्छा सा, टिकाऊ सा, और बिकाऊ सा award show बना सकते हैं। आशा है, मेरी इस जानकारी से, इस देश की हर गली, मोहल्ले और घरों में कुछ नए नए awards का जन्म होगा, जो हमें आने वाले भविष्य में TV पर देखने को मिलेंगे..। 
  
RD Tailang
Mumbai