27 July 2010


मैं और मेरी तनहाई
पहले तनहाई को कोई दो कौड़ी को नहीं पूछता था, अचानक एक दिन देश के Super Star Amitabh Bachchan ने अपनी तनहाई की बातों के किस्से सुनाकर सबको सकते में डाल दिया… "मैं और मेरी तनहाई, अक्सर यूं बातें करते हैं…" तब जाके पता चला कि तनहाई तो बड़ी Intelligent है। बड़ी अच्छी अच्छी बातें करती है, मैं खामखां तनहाई से घबरा कर, दोस्तों की फालतू बातों में Time waste किया करता था। तनहाई तो Girl friend की बातें करती है…क्योंकि दोस्तों से अगर Girl friend की बातें करो, तो उनका ही सवाल होता है, कि हमने तनहाई में क्या क्या किया… बात भी सही है, Mumbai में वैसे भी तनहाई तो मिलती नहीं है, और जहां तनहाई मिलती है, वहां लोग बातें नहीं करते… लेकिन मैंने तय कर लिया कि, Amitabh Bachchan की तरह, मैं भी तनहाई से अक्सर बातें किया करूंगा…

एक दिन मैंने एलान कर दिया कि मुझे कोई Disturb न करे, क्योंकि मुझे तनहाई चाहिए…मैंने list बना ली, कि तनहाई आएगी तो मैं क्या क्या बातें करूंगा…क्योंकि Amitabh Bachchan तो बड़ी General सी बातें करते थे… "तुम होती तो ऐसा होता, तुम होती तो वैसा होता…" अरे ऐसा वैसा क्या होता है, अब बातें करना हो तो खुल के बातें करो…मैंने तय कर लिया कि मैं तनहाई से बड़ी Clear और Specific बातें करूंगा… बस इंतज़ार शुरू…

दरवाज़े पर दस्तक हुई.. मैं बड़ा Impress हो गया, तनहाई Time की बड़ी Punctual है… दरवाज़ा खुला तो देखा, दोस्त खड़ा मुस्कुरा रहा था, वो ये समझ कर चला आया कि आज मैं खाली हूं… जैसे तैसे उन्हें टरकाया और अपना Concept समझाया कि भईया, मैं खाली नहीं, बल्कि खाली होकर, तनहाई का इंतज़ार कर रहा हूं। फिर दूधवाला आया, अखवार वाला आया, School द्वारा जबरदस्ती Donation के लिए भेजे गए बच्चे भी आ गए… Returns न भरने के लिए Income tax का letter भी आ गया… लेकिन तनहाई आने का नाम ही ले रही थी।

मुझे चिंता होने लगी, मैंने तनहाई को ढूंढना शुरू किया… जैसे ही Road पर देखा, तो Traffic jam लगा हुआ था…लोगों से पूछा तो उन्होंने मेरी हंसी उड़ाई बोले, भईया, Traffic jam में तनहाई ढूंढना वैसे ही है, जैसे संसद में ईमानदारी। मुझे चिंता लगी थी, तनहाई है कि मिलने का नाम ही नहीं ले रही थी, जबकि Bachchan साहब Clearly Indication दे चुके थे, कि वो और तनहाई अक्सर बातें करते हैं… मुझे लगा कि तनहाई शायद गरीबों की बस्ती में मिले, मैं वहां पहुंचा तो लंबी लंबी राशन की, पानी की Line तो मिल गई लेकिन तनहाई नहीं मिली… मैंने एक से पूछा तो बोला, भाईसाब इस बस्ती में तो मंहगाई मिलती है, तनहाई कभी नहीं मिली…

तनहाई को ढूंढते ढूंढते थक चुका था, शाम हो गई थी…अब अगर तनहाई मिल भी जाती तो बातें करने की हिम्मत भी नहीं बची थी… मैं Road किनारे पड़ी एक Bench पर बैठ गया…अंधेरा हो गया था, इसलिए साफ साफ दिखाई नहीं दे रहा था… मगर Road के सामने देखा तो दो खंभो के बीच में साड़ी डालकर किसी मजदूर ने झूला बनाया हुआ था, और उसका छोटा बच्चा Mumbai के शोरशराबे से बेखबर सो रहा था… और तनहाई उसे झूला झुला रही थी…

R D Tailang
Mumbai

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