23 September 2011

नाक के बाल

सदियों तक गुमनामी के अंधेरे, पिछड़ेपन, और इंसानी उपेक्षा में जीने के बाद, अचानक एक दिन, नाक के बालों ने विद्रोह कर दिया…। दबा हुआ दर्द विद्रोह बन कर फूट पड़ा… नाक के बालों ने नाक में दम कर दिया…। उनका एक मुखिया बाल बढ़कर… नाक से मूंछों तक पहुंच गया… और कहने लगा… "इंतज़ार, धैर्य, सहने की भी हद होती है… सदियां हो गईं, इंसान की नाक की तंग, अंधेरी और सीलन भरी गलियों में सड़ते हुए… आजतक इंसान ने हमारे बारे में कुछ सोचा…? तुम्हारे सर के बालों की तरह हम भी बाल है… पर हमें इतने सालों से इंसान की नाक में रह कर क्या मिला…? सिर के बालों को इतना मान और हमें अपमान…? सर के बालों के लिए तरह तरह के तेल, Lotion Cream, conditioner… और हमें… बहती हुई नाक का गटर…?


सिर क्यों… हमसे कुछ ही दूरी पर, मूछों के बाल… उन्हें एंठकर तुम अपनी मर्दानगी दिखाते हो… और वहां से थोड़ी ही दूर पर हम ऐसे… जैसे अंबानी की इमारत के आसपास झुग्गी झोपड़ी… आखिरी बाल से बाल का भेदभाव क्यों… ? हम वो बाल हैं, जो तुम्हारी सांसों में धूल, कचरे को तुम्हारे फेंफड़ों तक पहुंचने से रोकते हैं, वर्ना अब तक दम घुट कर मर गए होते…? सर के बाल बढ़ते हैं, तो तुम उनको संवार कर, अपनी Style पे इतराते हो… लेकिन हम बढ़कर नाक से झांकने भी लगें तो तुम कैंची अंदर तक घुसा कर हमारी गर्दनें काट देते हो, क्यों? अपनी नाक की शान तो तुम्हें इतनी है कि अगर तुम्हारी नाक पे बात आ जाए, तो तुम किसी की जान लेने में नहीं हिचकिचाते… फिर नाक के बालों की इतनी तौहीन क्यों…? "


मैंने नाक के बढ़े हुए बाल को प्यार से सहलाया, थोड़ा बहलाया, और बोला… "भाई मेरे हमारे मन में बाल के प्रति कोई भेदभाव नहीं है… दरअसल हमारा तुम पर आज तक ध्यान गया ही नहीं…।" वो बोला… "आखिर जाएगा भी कैसे… जो हम तुम्हारे Vote bank नहीं हैं न.. हम तुम्हारी सुंदरता में इज़ाफा नहीं करते, हम माथे पर बिखरकर तुम्हारी जुल्फें नहीं कहलाते… तुम लोग उन्हीं पर ध्यान देते हो… जो तुम्हारे सामने हैं… जिनसे तुम्हारी Image बनती है… लेकिन वो तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखते, जो तुम्हारे आगे लहराते नहीं है… अगर ऐसा ही होता… तो आसाम, मणिपुर, मिजोरम, अरूणाचल जैसे राज्य भी उसी तरह इतराते जैसे MP UP राजस्थान इतराते हैं… दरअसल तुम्हारे लिए, पूर्वी राज्य भी नाक के बाल ही हैं…"


मैंने कहा – "नहीं यार, हम क्या करें… हम क्या करें… हमने तुम्हें नाक के अंदर थोड़े ही डाला है, ये तो ऊपर वाले ने तुम्हें वहां जगह दी है…।" बाल बड़े ताव में बोला.. "वाह, अब भगवान के ऊपर ठीकरा फोड़ दिया… अरे भगवान ने तो भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, भेदभाव, अत्याचार, इन सबको तुमसे दूर रखा था, उसे तो तुम कहां से उठाकर अपने पास ले आए…। तुम लोगों को जब भी मौका मिलता है, तुम अपने हिसाब से चीज़ें जमा लेते हो… तब भगवान याद नहीं आते… आज भगवान की दुहाई दे रहे हो…?"


अब वो गुस्सा कम और दुखी ज़्यादा लग रहा था… ऐसा लग रहा था, जैसे उसकी आंखें नम हो गई हों… उसने कहा – "हमने आज तक कोई Demand नहीं की… हम जिंदगी भर तुम्हारा साथ निभाते हैं… सर के बाल वक्त आने पर झड़ जाते हैं… लेकिन हम आखिर तक तुम्हारा साथ निभाते हैं… सर के बाल, मौका मिलते ही अपना रंग बदल लेते हैं… लेकिन हम आखिरी दम तक काले रहते हैं… फिर भी हमारे बारे में तुमने एक पल भी नहीं सोचा होगा…"


मैने अपनी उपेक्षा को एक Philosophy का रंग देने की कोशिश की… मैंने कहा कि – "देखो, इमारत के कंगूरे की हर कोई तारीफ करता है, लेकिन ईमारत जानती है, कि अगर वो आज सीधी खड़ी है, तो नींव के पत्थरों की वज़ह से…।" वो एकदम से भड़क गया… बोला.. "कब तक ये बातें कर कर के मेहनत करने वालों को उल्लू बना कर जिंदगी भर गढ्ढे में धकेलते रहोगे…? तुम्हारी इसी फालतू Philosophy की वजह से कंगूरे के पत्थरों की तरह चापलूस लोग, दुनिया की चकम दमक में जिंदगी भर फायदे की मलाई खाते हैं… तारीफ पाते हैं, और अपनी चमकीली किस्मत पे इतराते हैं… और मेहनती नींव के पत्थर सदियों से ज़मीन के नीचे दफन पड़े होकर खुश होते रहते हैं, कि वो इमारत को खड़ा रखे हैं… वो बुद्धू ये नहीं जानते हैं, कि उन्हें वेवकूफ बनाया गया है… और बलिदान का पाठ पढ़ाकर, प्यार से दफनाया गया है…"


नाक के बाल के तर्को के आगे मेरी नाक झुक चुकी थी… ऐसा लग रहा था, कि अब ये बाल मेरी सांसें बंद कर देंगे… लेकिन नाक के बाल ने वापस नाक में घुसते हुए कहा… "ये ज़रूरी नहीं, कि तुम हमें सर पे बिठाओ… लेकिन इतना ध्यान रखो, कि जो तुम्हारी पीठ पीछे मेहनत करते हैं, उनको भी कभी कभी याद कर लिया करो… आखिर नींव के पत्थर भी सांस लेते हैं…!!"

Written by : RD Tailang
© Sequin Entertainment Pvt. Ltd. 2011

19 September 2011

KBC 5 Opening Speech 16 Aug 2011

आज मैंने कौन बनेगा करो़ड़पति की शुरूआत में, श्री अमिताभ बच्चन के लिए ये पंक्तियां लिखीं… वो KBC के Set पे आकर, ये पंक्तियां बोलते हैं…

मैंने यहां हिंदुस्तान महसूस किया है… मैंने यहां हिंदुस्तान महसूस किया है… यूं तो मैं, देश के कोने कोने में घूमा फिरा… कभी देखा एक छोर, तो कभी छुआ दूसरा सिरा… मगर मैंने हिंदुस्तान यहां महसूस किया है…

हमें जो लाखों Calls मिले, वो महज़ आकड़े नहीं थे… उसमें थी मंज़िलें, किसी के सपने यहीं थे… किसी में छिपी थी मां की बीमारी… कोई बच्चे को दिखाना चाहता था दुनिया सारी… इस खेल ने जीवन को कितना दिया है… मैंने यहां हिंदुस्तान महसूस किया है…

यहां खिलाड़ी साथ लाता है अपना गांव… पीपल की छांव, कौवे की कांव कांव… शहरों की रंगत भी यहां आती है… गांव की संगत में वो भी खिलखिलाती है… यहां सबके सपने एक होते हैं… एक की हार पे, दिल सभी के रोते हैं… ये खेल जब भी आता है, किसी का घर बन जाता है, कोई कर्ज उतर जाता है, कहीं जीवन संवर जाता है... इस खेल ने जीवन को कितना दिया है, मैं यहां हिंदुस्तान महसूस किया है…

मी भ्रष्ट आहे

और एक दिन वही हुआ, जिसका मुझे डर था… अचानक अन्ना ने आंदोलन छेड़ दिया… कि अब इस देश में भ्रष्टाचार नहीं चलेगा… दिल पे गाज़ तो गिरनी ही थी… भ्रष्टाचार की जिस संस्कृति में हम पैदा हुए, पले, बढ़े, जवान हुए... उसके विकास में अपना भी योगदान दिया… अन्ना ने आकर अचानक उसे बुरा कह दिया और बोला कि आज से ऐसा करना खराब है… ये तो वही बात हो गई… कि जिस पत्नी के साथ इतने दिनों गुज़ारे हों… पड़ौसी आकर एक दिन बोल दे.. कि वो तो डायन है… मन कैसे मानेगा इस बात को… पर अन्ना कह रहे हैं, इसलिए मानना भी पड़ा, कि भ्रष्टाचार हमारे लिए वाकई बुरा है…

अन्ना से पहले हमें अपने भ्रष्टाचारी होने पर कितना गर्व था… हमारा आत्मविश्वास किस हद तक ऊंचा था, हम बिना Insurance की गाड़ी बेधड़क चलाते थे… क्योंकि हमें विश्वास था, कि अगर पकड़े जाएंगे, तो 50 रूपये से ज़्यादा नहीं लगेगा… देश का ऐसा कौन सा युवा है, जिसने बिना Driving License की गाड़ी नहीं चलाई हो… कभी पकड़े भी गए… तो 20 रूपये से ज़्यादा किसी हवलदार ने Demand नहीं की… आज स्थिति बिल्कुल बदल गई है, हर टोपी वाला हवलदार अन्ना नज़र आता है… गाड़ियां निकालने में डर लगता है… वो 50 रूपये वाला आत्मविश्वास खत्म हो गया है… पहले Road पे बिना Papers की गाड़ी भी जिस शान से लहराते हुए चलते थे… आज हाथ कांपने लगे हैं… ईमानदारी ने आत्मविश्वास पर ज़बरदस्त चोट की है… और देश के विकास के लिए, उसके नागरिकों का आत्मविश्वासी होना बहुत ज़रूरी होता है…

आज सारा देश कह रहा है, "मैं भी अन्ना…" जो खा रहा है वो भी अन्ना कहता है, और जो खिला रहा है वो भी अन्ना है… जब सारा देश अन्ना है, तो भ्रष्ट कौन है…? जब एक अन्ना दूसरे अन्ना को नहीं खिलाएगा, तो कौन खिलाएगा… ?

अन्ना की वजह से, हमारी तो सारी पढ़ाई ही बेकार हो गई… हिंदी के Papers में हमने " जेब गरम करना" जैसे मुहावरों का अर्थ बता बता कर, कितने Marks हासिल किए थे… लेकिन भ्रष्टाचार खत्म होते ही, ये सारे मुहावरे भी निरर्थक हो जाएंगे… टेबिल के नीचे से लेना, ऊपरी कमाई, रंगे हाथों पकड़े जाना… जैसे सारे वाक्य अचारक खत्म हो जाएंगे, जो अभी तक हमारी पढ़ाई लिखाई का एक हिस्सा थे…

अन्ना को क्या है… अन्ना को Passport नहीं बनवाना… उन्हें राशन कार्ड भी नहीं चाहिए… वो गाड़ी भी Drive नहीं करना… बच्चों का Admission भी नहीं कराना… और तो और वो 15 -16 दिन भूखे भी रह सकते हैं… इसलिए वेा बिना भ्रष्टाचार के रह सकते हैं… वर्ना उनसे कहिए… Agent को बिना 2500 रूपये दिए Driving License बनवा लें तो मान लेंगे देश में ईमानदारी आ चुकी है… या फिर जिन्होंने रामलीला मैदान में किरण बेदी का अभिनय देखा है… वे अपने अपने शहर में जाकर, सारे Traffic नियम पाल रहे होंगे, या लौटते समय, चालू टिकट लेकर, Reservation डब्बे में न घुसे होंगे … तो समझेंगे अन्ना सफल हो गए हैं, और भ्रष्टाचार खत्म हो गया है…

पर मानना पड़ेगा अन्ना को… भ्रष्टचार भले खत्म हो या न हो… उन्होंने देश के उस युवा वर्ग को कमरे से बाहर ला दिया, जो दिन भर Face book के बैठा बैठा… या तो Photo upload करता रहता था, या Chat में लगा रहता था… टोपी भले Fashion से ही सही, लेकिन Anna ने सबको टोपी पहना ही दी…