09 August 2010

गाली की ताकत

गाली की ताकत
कौन कहता है कि हमने हर जगह तरक्की कर ली। माना कि इंसान का clone बन गया, DNA का Code crack हो गया। चांद पर Tourism शुरू हो गया, मंगल पर पानी मिल गया… लेकिन जिस क्षेत्र में हमारी पूरी मानव सभ्यता पिछड़ी है, वो है गालियां…। मैं दावे के साथ कह सकता हूं, कि गालियों के क्षेत्र में पिछले 200 सालों में बिल्कुल भी काम नहीं हुआ है। जो गालियां 1857 के Freedom Fighters ने अंग्रेज़ों को दी थीं, वही घिसीपिटी गालियां हम आज भी अपने पड़ौसियों को दिए जा रहे हैं। किसी को चिंता नहीं है, कम से कम इस Field में तो कुछ तो विकास किया जाए।

ये बात हमारे समझ में कब आएगी कि गालियों के असर का भी एक समय होता है, उसके बाद वो बेअसर हो जाती हैं। आज से 50 साल पहले मां की गाली पर गोलियां और तलवारें चल जाती थीं, लेकिन आज वो एक बेअसर और Boring गाली बन कर रह गई है। भगवान न करे, कि कभी war हो, तो सोचिए कितनी शर्म आएगी कि हम 2010 में भी वही गाली दे रहे हैं, जो 1972 में दी थी।

ये बहुत गंभीर विषय है, इसपर सभी लोगों को एकजुट होकर कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। जब हम एक ही अखबार रोज़ रोज़ नहीं पढ़ते…एक ही Underwear रोज़ Use नहीं करते…एक ही खाना बार बार नहीं खाते तो फिर एक ही गाली रोज़ क्यों देते हैं। सोचिए कितनी शर्मनाक Situation हो जाती है, जब कोई हमें एक गाली देता है मसलन " तेरी मां की…" और हम वही गाली Repeat कर देते हैं… शर्मनाक बात ये नहीं कि हमने गाली खाई है, शर्म की बात ये है, कि हमारे पास उसकी गाली का कोई जवाब ही नहीं है, क्योंकि हमने कभी नई गालियां सोचने की कोशिश ही नहीं की।

अब समय बदल गया है, लोग बदल गए हैं, Style बदल गया है… कब तक हम Mother series की, Sister series की गालियां ही Use करते रहेंगे। किसी को तो आगे आना होगा, और इस राष्ट्रव्यापी समस्या से जूझना होगा। देश के, समाज के, व्यक्ति के विकास में गालियों का बहुत बड़ा योगदान होता है। आज भी हम उस आदमी की बात को बड़ी गंभीरता से सुनते हैं, जो बात बात पर गाली देकर बात करता है। गाली खाकर काम करना आज भी हमारी आदत है, और देश में गालियों का ही अभाव है। बहुत शर्म की बात है।

आखिर आज हम गब्बर को गालियों से ही तो याद रखते हैं, सुअर के बच्चो, ये तीनों हरामज़ादे..वगैरह वगैरह… दरअसल गाली के साथ भय जुड़ा है, और भय के साथ प्रीत… यानि Indirectly गाली और प्यार का भी रिश्ता तो बनता ही है – ये मैं नहीं तुलसी दास जी ने कहा है – भय बिन होए न प्रीत...

मैं आशा करता हूं, कि हमारा देश एक बार फिर गालियों के मामले में आत्मनिर्भर अवश्य बनेगा…

© RD Tailang
Mumbai

4 comments:

  1. sahi kaha telang ji.mene bhi kitne saalon baad ek nai gali suni hai "teri maa ka sakinaka'


    jag

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  2. jab jage tabhi sawera Sir.. aap se hi shree ganesh ki ummeed hai ab.. :-D

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  4. sahi kaha rd ji...is vishay par facebook par ek page toh banta hi hai.

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